हिन्दू लोग देह को अश्व (घोडा) की संज्ञा देते हैं। अश्व को खिलाना पिलाना स्वार्थ नहीं। मुसलमान शरीर को काबे की चारदीवारी मानते हैं और इसमें स्थित हृदय को खुदा का बनाया काबा। कावे की चारदीवारी की मरम्मत क्या स्वार्थ है, खुदगर्जी है। तुम देह, मन और आत्मा लेकर जन्मे हो। पेट के लिए अन्न का प्रबन्ध करना न्याय है।
मन के लिए ज्ञान की खोज करना धर्म है। इनमें से किसी का भी निरादर करना निकम्मापन है, तुम्हारा अपने इस शरीर के प्रति कर्तव्य ही प्रथम और परम कर्तव्य है। तपस्या का अर्थ शरीर को आग में तपाना अथवा इसे भूखा प्यासा रखकर दुर्बल करना नहीं। तपस्या का अर्थ है बुरी इच्छाओं को दुर्बल बनाना स्वयं को पाप रहित करना, आत्मा को बलवान बनाना, देह को सुखा देने वाली तपस्या पाप है, गुनाह है। योग दुर्बलता का पाठ नहीं पढ़ाता।
योगीराज कृष्ण क्या शरीर से दुर्बल थे, तपस्वी बुद्ध का शरीर भी आज के नौजवान को शरीर को पुष्ट करने का पाठ पढ़ा सकता है। तपो धनी महावीर की मनोज्ञ प्रतिमा किसी के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकती है। तपमूर्ति महर्षि स्वामी दयानन्द का विशाल शरीर देखकर बड़े-बड़े बलशाली पहलवान भी ईर्ष्या कर सकते हैं।