निष्काम भाव से किये गये कार्य बन्धन का कारण नहीं बनते अन्यथा संसार का प्रत्येक कार्य बन्धन की ओर ले जायेगा। आप कर्म करने वाले यंत्र बन जायेंगे, मन में समझे कि कराने वाला कोई और है मैं तो निमित्त मात्र हूं।
जैसे आप भोजन कर रहे हैं तो ऐसा मानकर करिये कि मैं परमात्मा के मंदिर में भोग लगा रहा हूं। इस हवन कुण्ड में आहुति अर्पित कर रहा हूं, क्योंकि यह शरीर मेरा नहीं।
प्रभु ने मुझे सत्कर्म करने के लिए दिया है, यह जीवन प्रभु की देन है। यही कामना होनी चाहिए कि इस शरीर के द्वारा किये गये सत्कर्मों की सुगन्ध संसार में फैले।