बुजुर्ग व्यक्ति की दुर्बलता यह होती है कि इस अवस्था में उसकी सम्मान की कामना बढ़ जाती है। खाने-पीने और वेश-भूषा के सापेक्ष वह प्रत्येक दशा में सम्मान की चाहत रखता है। हर संस्था में, घर के प्रत्येक कार्य में वह टांग अडायेगा, नाम बढाने की कोशिश करेगा। वह चाहता है कि मेरा परिवार मेरे अनुभवों का लाभ उठाकर उन्नति करता रहे। कभी-कभी वह उन अनुभवों को उन पर थोपना चाहता है।
अपने अनुभवों के आधार पर जब यह देखता है कि अमुक कार्य में मेरे परिवार की हानि होगी, उसकी प्रतिष्ठा में कमी आयेगी तो वह सीमाओं से बाहर जाकर भी उसे रोकने का प्रयास करेगा। इस कारण कभी-कभी उसे अपमान भी सहना पड़ जाता है फिर भी वह अपनी बात मानने की जिद पर अड़ा रहता है, क्योंकि उसे वह परिवार की सेवा ही मानता है, परन्तु उसे यह ज्ञान होना चाहिए कि यह बन्धन है।
इस अवस्था में तो उसे सेवा करके भी फल की कामना नहीं करनी चाहिए। सेवा तो उसका निवेश है, जिसका प्रतिफल उस सेवा के अनुसार उसे कभी न कभी मिल ही जाना है। सेवा करते रहिए और प्रभु का धन्यवाद भी करते रहिए कि उसने आप को दूसरों की सेवा करने योग्य स्वास्थ्य प्रदान किया है।