शरीर रूपी रथ में दस घोडे लगे हैं, पांच ज्ञानेन्द्रिय तथा पांच कर्मेन्द्रिय के रूप में। इनकी लगाम होती है मन के हाथ में। रथ का स्वामी है आत्मा। होना तो यह चाहिए कि रथ अपने स्वामी (आत्मा) के आदेश पर चले, परन्तु रथ चलता है मन के आदेश पर। विडम्बना यह है कि जिसे नौकर होना चाहिए वह मालिक बनकर बैठा है और मौलिक नौकर बन गया है। यदि शरीर मेरा है तो आदेश भी मेरे चलने चाहिए। जब तक नौकर (मन) अपनी चलाता रहेगा हम भटकते रहेंगे। यदि आत्मा के आदेश पर चले तो हम सभी चेतना में जीते रहेंगे। होशपूर्ण अवस्था में सत जाग्रत अवस्था में जीवन चलता रहेगा। जब हम चाहेंगे अतीत में जायेंगे, भविष्य में जायेंगे या वर्तमान में रहेंगे। अभी हमें पता ही नहीं कि हम अधिकांश समय अतीत में हैं या फिर भविष्य में। इन दोनों के मध्य हमारा वर्तमान बीता जा रहा है। यह असंतुलन ही हमारे भटकाव का कारण है। वर्तमान के आते ही मन की मृत्यु हो जाती है। मन को जीवित रखने के लिए अतीत या भविष्य की खुराक चाहिए। अर्थात या भविष्य में विचार के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में विचार नहीं हो सकता। वर्तमान में मात्र साक्षी का भाव ही रहेगा। इसलिए वर्तमान में रहो, वर्तमान में जियो ताकि मन हावी न हो, तभी जीवन के यथार्थ का बोध हो पायेगा।