संसार की रीति यही है कि यदि मनुष्य शरीर से प्राण छूटते समय मन में किसी की मोह ममता का वास हो तो अगले जन्म की कड़ी वहीं से प्रारम्भ होती है। अन्तिम समय जैसी मति होगी उसकी गति भी वैसी ही होगी। इसलिए मन में वैराग्य जगाइये अंतिम समय तक ज्ञान और भक्ति की धारा बहती रहेगी और इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त होने की सम्भवनाएं प्रबल हो जायेंगी। ज्ञान और भक्ति के द्वारा स्वयं को मुक्त करने का प्रयत्न करें। संसार तो एक दिन छोडऩा ही पड़ेगा। पहले मन को मोह ममता से मुक्त कर लीजिए, वैराग्य जगाइये तो इसी जन्म में मुक्ति सम्भव है। मोह ममता में पड़े रहोगे तो लम्बे समय तक भटकना पड़ेगा। निश्चय ही यह भी जान लें कि कर्तव्यों से भागना मोह ममता का त्याग बिल्कुल नहीं है। इस जन्म में जिन माता-पिता के यहां जन्म लिया, उन्होंने हमारा पालन-पोषण किया, हमें संसार में व्यवहार करने योग्य बनाया। हमने गृहस्थी बसायी, संतानें पैदा हुई, हमारा उन माता-पिता के प्रति, अपनी संतानों के प्रति, जिस समाज में रहते हैं उस समाज के प्रति और सबसे अधिक परमपिता परमात्मा के प्रति हमारे कर्तव्य जिन्हें पूरा करना अनिवार्य है। इन कर्तव्यों की उपेक्षा अवहेलना कर वैराग्य की बात करना पलायन है, पाप है, पाखंड है।