कुछ मतावलम्बियों की मान्यता है कि आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता। परमात्मा के कोष में अनन्त आत्माएं हैं, जिनमें से परमात्मा क्रमवार संसार में भेजता रहता है, परन्तु यह मान्यता अवैज्ञानिक है, क्योंकि ‘वेद (जिस ज्ञान को परमात्मा ने ऋषियों के माध्यम से संसार को दिया) के अनुसार आत्माएं मोक्ष प्राप्ति तक संसार में अपने कर्मों के आधार पर विभिन्न योनियों में जन्म लेती रहती हैं। यदि कर्म भोग के सिद्धान्त के आधार पर जन्म न होता तो कोई जन्मकाल से ही अरोग्य, सुन्दर, सुखी और कोई रोगी, कुरूप और दुखी क्यों होता। कोई निर्धन, नीच जाति कुल में और कोई धनी और उच्च जाति कुल में क्यों जन्म लेते। सच्चाई यह है कि जिसका जैसा कर्म था, उसको वैसा ही शरीर, कुल, दुख-सुख तथा भोग की प्राप्ति हुई अन्यथा परमेश्वर इस कार्य को पक्षपात तथा न्याय के सिद्धान्त के विरूद्ध निरूपति किया जाता, किन्तु परमात्मा तो दयालु तथा न्यायकारी है। हमारे पूर्व जन्मों में जैसे बुरे कर्मों के अनुसार ही कोई सुन्दर स्वस्थ है, उच्च कुलीन है, धनी है और कोई रोगी, कुरूप और दुखी। हमारे अशुभ कर्मों से अधिक दुख वह हमें प्रदान नहीं करता इसलिए दयालु है। प्रत्येक शुभ-अशुभ कर्म के अनुसार दुख-सुख प्रदान करता है, इसलिए वह न्यायकारी है।