लोग सोचते हैं शत्रु से बदला चुकाना शान की बात है। वे इसे शान के साथ-साथ साहसपूर्ण कार्य भी समझते हैं। साहस तो तब है, ज हम आप इसे सहन कर जाये। सहनशीलता मनुष्य को महान बनाती है, आन्तरिक शक्तियों को विकसित करती है। महर्षि वशिष्ठ सहनशीलता और क्षमाशीलता के उदाहरण हैं, जहां कहीं भी बदले की भावना उगती दिखाई दे उसे प्रेमपूर्ण व्यवहार से नष्ट करने का प्रयास करें। अपने साथ अभद्रता करने वाले के साथ भलाई का व्यवहार करें। उसकी सहायता कीजिए। ऐसा करने से वह आपके प्रति विनम्र होगा। अपने मन से परदोष दर्शन, घृणा, द्वेष के भाव निकाल दें। दूसरों के गुणों को आत्मसात करोगे तो आपके गुणों में वृद्धि होगी। किसी अहित न सोचिए। बन पड़े तो उपकार ही कीजिए। आपके प्रति कोई अपराध करता है तो उसे क्षमा कर दें। किसी के प्रति बैर का भाव न रखें। बैर भाव रखने का अर्थ है परमात्मा के प्रति विद्रोह। घृणा को प्यार से जीजिए, सबको अपने समान समझे, यही धर्म है, यही मानवता है, इसी में आपका बडप्पन है।