Tuesday, May 13, 2025

अनमोल वचन

भारतीय संस्कृति में परमात्मा को जो मातृ स्वरूप में पूजा गया है उसके पीछे बहुत गहरे वैज्ञानिक कारण थे। साधारणत: मनुष्य का मन पिता की अपेक्षा अपनी माता के अधिक निकट होता है। पिता के साथ उसका सम्बन्ध वस्तुओं और सामग्री को उपलब्ध कराने वाले एक परिपूरक की भांति होता है। पिता की सत्ता घर और घर में रखी सामग्रियों की उपलब्धता तक सीमित है, परन्तु माता की सत्ता घर में रहने वाले परिवार के सभी सदस्यों के मन तक पहुंचती है, तभी तो ऋषियों ने ईश्वर को पहले ‘त्वमेव माता’  कहा अर्था तुम ही मेरी माता हो, ‘च पिता त्वमेव’  अर्थात आप पिता भी हो। कहा तो पिता भी गया है, परन्तु माता के बाद में। इसके पीछे गहरे कारण थे कि पिता चिन्ह है अहंकार का, दंड का, जबकि माता चिन्ह है करूणा, क्षमा और दया की देवी, देवी मां का त्रिरूप सृजनकर्ती, पालनकर्ती और संहारकर्ती का है और इन्हीं तीन रूपों का नवरात्रों में पूजन किया जाता है। देवी मां को सिद्धिदात्री माना जाता है। मान्यता है कि हमारे द्वारा की गई पूजा का फल सिद्धिदात्री के रूप में हमें प्रदान करती है। हमसे जो अज्ञानतावश भूल हो जाये, कोई पाप हो जाये तो सिद्धिदात्री के रूप में मां क्षमा भी करती है, किन्तु कर्म अकर्म का ज्ञान होते हुए भी यदि हम पाप करते हैं तो मां काली के रूप में हमें दंड भी देती है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

87,026FansLike
5,553FollowersFollow
153,919SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय