आज का युग अधिक से अधिक धन कमाने और संग्रह करने की प्रतिस्पर्धा का युग है। मनुष्य के जीवन में एक ही लक्ष्य रह गया है कि अधिक से अधिक धन इकट्ठा किया जाये। धन कमाने और उसे इकट्ठा करने में वह नीति और न्याय सब भूल गया है। प्रभु की याद उसे आती ही नहीं। वह संसार में आने के मुख्य लक्ष्य ‘प्रभु प्राप्ति’ को मन से ही निकाल देता है तो फिर कष्टों में घिरता है और जब कष्टों में दुखों में घिरता है तो भगवान को पुकारता है। यदि वह सुखों में भी उसे पुकारे और उसका सुमरण करता रहे तो जीवन में दुख ही क्यों आये। ऐसा भी नहीं कि शत-प्रतिशत व्यक्ति ऐसे ही होते हैं। ऐसे भी लोग संसार में हैं जो दुख और सुख में उसे समान रूप से याद करते हैं, बल्कि ऐसे व्यक्ति सुखों में उसे अधिक याद करते हैं। वे अपने सुखों को प्रभु की कृपा और आशीर्वाद मानकर उसका धन्यवाद करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति ही दूसरों के दुख-दर्द में सहायता और सेवा को सदैव उद्यत रहते हैं, निश्चित ही वे प्रभु के प्यार को प्राप्त करते रहते हैं और सदा सुख का अनुभव करते हैं।