भाग्य और पुरूषार्थ एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना पुरूषार्थ के भाग्य फलित नहीं होता और यदि भाग्य अनुकूल न हो तो किया गया पुरूषार्थ भी अपेक्षित फल नहीं देता। नि:संदेह पुरूषार्थ किसी कार्य की सफलता का प्रथम आवश्यक तत्व है, किन्तु भाग्य का साथ भी उतना ही जरूरी है।
प्राय: हम लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपनी ऊर्जा लगा देते हैं, किन्तु बहुधा किये गये परिश्रम से अधिक भाग्य प्रबल सिद्ध होता है। अच्छे समय के साथ अच्छे भाग्य की अनिवार्यता से भी इंकार नहीं किया जा सकता। नियति इसी का नाम है।
‘समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता’ इस लोकोक्ति में भी यही भाव निहित है। समय अच्छा हो तो मनुष्य को अपने भाग्य पर इठलाना नहीं चाहिए और समय बुरा हो तो पुरूषार्थ के बल पर अपनी विपरीत परिस्थितियों को अनुकूलता में परिवर्तित करने हेतु कोई कोर-कसर शेष नहीं रहनी चाहिए।
स्मरण रहे कि किसी रात में यह क्षमता नहीं कि वह दिन होने से रोक सके। समय में इतनी शक्ति और भाग्य में इतना बल है कि वह किसी का भी कायापलट कर सकते हैं, जिसे हम चमत्कार की संज्ञा दे देते हैं।