Monday, December 23, 2024

अनमोल वचन

शास्त्र (वेद) कहता है कि परमात्मा दयालु है, न्यायकारी है। कभी-कभी हम लोग भ्रमित हो जाते हैं और यह मान लेते हैं कि जहां न्याय होगा, वहां दया का लोप हो जायेगा। मानो किसी ने किसी की हत्या कर दी तो न्याय का तकाजा है कि उसे आजीवन कारावास अथवा मृत्यु दण्ड दिया जाये, किन्तु दया करके उसे मुक्त करने को हम न्यायाधीश की दया कह देते हैं। वास्तव में धर्मानुसार जिसने जैसा बुरा कर्म किया है, उसको वैसा ही दण्ड मिलना चाहिए। उसी का नाम न्याय है।

यदि अपराधी को दण्ड न दिया जाये तो दया का नाश हो जाये, क्योंकि एक अपराधी डाकू और हत्यारे को छोड़ देने से सहस्रो धर्मात्मा पुरूर्षों को दुख देना है। एक को ‘दया कर छोड़ देने’ से सहस्रो मनुष्यों को दुख प्राप्त होता है। वह दया किस प्रकार हो सकती है।

दया तो वह है कि उस अपराधी को कारागार में रखकर पाप करने से बचाना, उस अपराधी मार देने से अन्य सहस्रो मनुष्यों पर दया होती है।

दया और न्याय में नाम मात्र का ही भेद है, क्योंकि जो प्रयोजन न्याय से सिद्ध होता है, वही दया से भी सिद्ध होगा। दण्ड का प्रयोजन है कि मनुष्य अपराध करना बंद कर पाप से बचें और दूसरों को भी दुख प्राप्त न हो। जिसने जितना अपराध या पाप किया है, उतना ही उसको दण्ड दिया जाये, वह न्याय है और अपराध से अधिक दण्ड न देना दया हुआ। इस कींचित से अंतर को बहुत सरलता से समझा जा सकता है।

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