छियत्तर वर्ष पूर्व स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और स्वातंत्र वीरो (क्रांतिकारियों) के बलिदान के कारण हमें स्वतंत्रता मिली, परन्तु क्या जिन स्वातंत्र वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया, ऐसे राष्ट्र की कल्पना की होगी।
चीनी आक्रमण के पश्चात साठ वर्षों से महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी की समस्याओं का हम रोना रोते आ रहे हैं। सत्ता किसी की भी रही हो, इन समस्याओं के मूल कारण की अनदेखी की जाती रही है।
सबसे बड़ा कारण देश की बढ़ती जनसंख्या है। जहां 1947 में हम पैंतीस करोड थे, आज विभाजित भारत में ही हम एक सौ चालीस करोड़ से ऊपर हैं। तेजी से बढ़ती आबादी के कारण तेल, प्राकृतिक गैस आदि ऊर्जा के संसाधनों पर अत्याधिक दबाव बढ़ गया है, जो भविष्य के खतरे का संकेत है। जिस अनुपात में आबादी बढ़ रही है उस अनुपात में भोजन, पानी, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि की व्यवस्था करना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल का कारण बनती रहेगी। साथ ही बेरोजगारों और गरीबों की संख्या में वृद्धि समाज और देश में शांति के लिए समस्या बनेगी, अराजकता आयेगी।
बढ़ती जनसंख्या का एक चिंतनीय पहलू यह भी है कि इसका सीधा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है। फल स्वरूप रोग बढ़ रहे हैं। बढ़ती आबादी को घर भी चाहिए, जिसके लिए वृक्ष कटेंगे, उपजाऊ भूमि कम होती जायेगी, अन्न संकट बढ़ेगा। इसलिए आज के पवित्र दिवस पर इस ज्वलंत समस्या के समाधान पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाये, परन्तु समाधान केवल विधिक मार्ग से ही निकल पायेगा। देश हित में इसके लिए कड़े कानून बनाने के लिए सभी राजनैतिक दल अपनी सहमति दें।