Monday, December 23, 2024

अनमोल वचन

सन्त-महात्माओं ने मानव शरीर को ही सच्चा मंदिर, गुरूद्वारा, मस्जिद और चर्च कहा है, क्योंकि इसके अन्दर प्रभु का निवास है। परन्तु कितने दुख की बात है कि लोग इंसानों द्वारा बनाये गये मंदिर-मस्जिद आदि के झगड़ों में उलझकर परमात्मा द्वारा सृजित मंदिरों, गुरूद्वारों, मस्जिदों, गिरिजाघरों अर्थात मनुष्यों को हजारों की संख्या में मार गिराने में जरा भी संकोच नहीं करते।

सब कुछ धर्म के नाम पर किया जाता है, जबकि जीव हत्या सबसे बड़ा अधर्म है। वे अज्ञानी ऐसा सोचते हैं कि हमसे अलग दूसरे मार्ग पर चलने वाले लोगों को समाप्त कर हम प्रभु की प्रसन्नता प्राप्त कर लेंगे। यह एक सत्य है कोई किसी के पुत्रों को मारकर किसी पिता को प्रसन्न नहीं कर सकता।

संसार के भिन्न-भिन्न धर्मों के सभी सन्तों, महात्माओं ने सम्पूर्ण मानवता के प्रति प्रेम और आपसी भाईचारे का उपदेश दिया है, परन्तु हम अज्ञानतावश बिल्कुल विरोधी दिशा में चले जा रहे हैं। मानव के जन्म का उद्देश्य प्रभु की प्राप्ति है, परन्तु सांसारिकता में हम इस उद्देश्य से भटक गये हैं।

यदि कोई प्रभु भक्ति करता है तो वह उसकी प्राप्ति के लिए नहीं, अपितु सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु करते हैं इस कारण हमारी वह भक्ति मानव जन्म के उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाती।

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