नारी, पत्नी के रूप में रहकर भी पति के जीवन को सुधारने में सदैव तत्पर रही है। पत्नी का धर्म पति का हित करने में समर्पित रहा है। पति कैसा भी हो, नारी उसे निभाने का प्रयास करती आई है। एक बार जिसे अपना कह दिया, उसे आजीवन निभाने का प्रयत्न किया। भारतीय नारी अपनी इस तेजस्विता का परिचय सदैव देती आई है।
शास्त्रों में विद्योतमा का विवाह अज्ञानी और अशिक्षित कालिदास से हुआ था। विवाह के बाद विद्योतमा ने कालिदास को ज्ञान के प्रति प्रेरित किया, तत्पश्चात उसमें लगन पैदा की और उनके अध्ययन के लिए उच्च-स्तरीय व्यवस्था बनाई। परिणामस्वरूप, एक निरक्षर व्यक्ति अपनी पत्नी की प्रेरणा से महाकवि कालिदास बन गया।
पत्नी रत्नावली ने तुलसीदास की प्रतिभा को ईश्वर चिंतन की ओर मोड़ दिया और समाज को श्री रामचरित मानस ग्रंथ उपलब्ध कराया। तुलसीदास की महानता नारी की कृपा से ही सम्भव हो सकी और वे संसार में संत तुलसीदास कहलाए।
संयोगिता के सौंदर्य पर पृथ्वीराज चौहान इतने मोहित थे कि वे राजमहल छोड़कर शासन कार्य संभालने भी नहीं जाते थे। परिणामस्वरूप, मुहम्मद गौरी ने आक्रमण कर दिया। चंद वरदाई ने संयोगिता को यह विवरण लिख भेजा और संयोगिता ने पृथ्वीराज को लताड़ते हुए प्रेम से कर्तव्य को श्रेष्ठ बताया और उन्हें मोर्चा संभालने के लिए विवश किया।
पति चाहे कैसा भी हो, पत्नी उसे निभाने का प्रयास करती है और परिवार की इज्जत बचाती है। पत्नी पति के देर से आने पर भी उसकी राह देखती है और उसकी हंसी में ही अपनी खुशी मानती है।
नारी त्याग की मूर्ति है। पति में बुराइयां होने पर भी उसे शीघ्रता से त्यागती नहीं है। पति के साथ रहकर ही वह त्यागमय प्रेम का परिचय देती है। नारी को दासी, भोग्या या नौकरानी समझना संस्कृति का अपमान है।
अदालतों में चलने वाले कुटुंबों के विवादों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि नर-नारी के बीच अहंकार का टकराव एक दूसरे के जीवन को क्षति पहुंचा रहा है। विनम्रता और सहनशीलता के अभाव में विवेक कमजोर पड़ गया है और विवाद बढ़ते जा रहे हैं।
आधुनिक सभ्यता ने नर और नारी के गौरवमयी जिम्मेदारी को क्षत विक्षत कर डाला है। खुदगर्जी और स्वार्थ भरे जीवन ने उसका स्थान प्राप्त कर लिया है। पुनः विचार क्रांति द्वारा नव निर्माण की परम्परा जीवित होनी चाहिए।