मेरठ। 1857 में आज 10 मई के दिन ही मेरठ में क्रांति भड़की थी। 85 सिपाहियों के कोर्ट मार्शल का निर्णय तीसरी रेजिमेंट को भेजा गया था। कुल 85 सिपाहियों को 10 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई।
मेरठ में 8 मई 1857 के दिन कोर्ट मार्शल का निर्णय तीसरी रेजिमेंट को भेजा गया। सभी 85 सिपाहियों को 10 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। कोर्ट मार्शल में सम्मिलित 15 देशी अधिकारियों में से 14 ने 85 सिपाहियों को दोषी माना और एक ने नहीं। इसके बाद मेरठ में 10 मई 1857 को क्रांति की ज्वाला भड़की थी।
इतिहासकार एके गांधी ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह 14 देशी अधिकारी पूरी तरह अंग्रेज अधिकारियों के दबाव में थे। क्योंकि वह सभी रैंक में कनिष्ठ थे और सभी वरिष्ठ अधिकारी अंग्रेज थे।
इतिहासकार एके गांधी ने बताया कि अंग्रेजों ने पूरी तरह से न्याय प्रक्रिया का मखौल उड़ाया। मेरठ गेजेटियर में है कि दोषी सिपाहियों ने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा था। सत्य यह है सिपाहियों को बोलने का कोई अवसर नहीं दिया गया।
न्याय प्रक्रिया का मखौल इस प्रकार भी उड़ाया गया कि तीसरी रेजिमेंट के कमान अधिकारी ने 85 सिपाहियों में से 11 की सजा घटाकर 5 वर्ष कर दी। यह तर्क दिया कि वह 18 वर्ष से कम आयु के थे। एक कमान अधिकारी द्वारा कोर्ट मार्शल के निर्णय में परिवर्तन अधिकार अतिक्रमण के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता।
हिंदू फकीर के रूप में बाबा औघड़नाथ मंदिर में उपस्थित स्वामी दयानंद को भी शाम तक निर्णय ज्ञात हो गया। इतिहासकार एके गांधी ने बताया कि क्रांति की योजना बना रहे सभी लोग सिपाहियों को शांत देखकर गहन विचार में थे।
इस शांति के चलते कैसे क्रांति हो पाएगी। उन्हें आशा थी कि अगले दिन परेड ग्राउंड में सिपाहियों को सरेआम सजा दी जाएगी। जिसके बाद सिपाही भड़क जाएंगे। सभी लोग योजना बनाने में जुट गए। कई लोगों को स्पष्ट आदेश था कि उन्हें अपनी पहचान उजागर किए बिना ही क्रांति को भड़काना है।