परमपिता परमात्मा के अतिरिक्त न किसी से डरो न ही किसी को डराओ। डरा हुआ मनुष्य कायर होता है और डराने वाला अत्याचारी।
स्वाभाविक है आप न कायर बनना पसंद करोगे और न ही एक अत्याचारी इंसान क्योंकि डरपोक व्यक्ति किसी भी समस्या पर न सही निर्णय ले पायेगा और न कोई सकारात्मक और न कोई रचनात्मक कार्य कर सकेगा, फिर उससे अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने की आशा करना दूर की बात है।
यदि तुम कायरता छोड़ दो और दुर्बल पर अत्याचार करने की दुर्भावना का त्याग कर दो तो ऐसी कोई उपलब्धि नहीं, जो तुम्हें प्राप्त न हो सके। ऐसा कोई सम्मान नहीं, जिससे तुम वंचित रहो। ऐसा कोई लक्ष्य नहीं, जिसे तुम प्राप्त न कर सको। ऐसी कोई मंजिल नहीं, जहां तुम पहुंच न सको, परन्तु तुम्हें उस सर्वशक्तिमान, नित्य, परम, सुहृदय प्रभु की शरण में जाना पड़ेगा, जिनके बल के प्रभाव से तुम भी बलवान, क्षमतावान, महासामर्थ्यवान, निर्भीक और सुहृदय बन जाओगे। तब तुम न अत्याचार की सोचोगे और न ही अत्याचार सहोगे। तुम श्रेष्ठ मानव बन जाओगे।