जीवन में सफलता सभी चाहते हैं असफलता का मुंह देखना किसी को भी पसन्द नहीं, किन्तु सफलता प्राप्ति के लिए जो मापदंड निश्चित है उनकी हम उपेक्षा कर देते हैं।
अनुशासित रहकर कठोर परिश्रम करना सफलता के लिए आवश्यक है उससे अधिक दूर दृष्टि की आवश्यकता है। सफलता असफलता पर हमारे व्यवहार की छोटी-छोटी बातों का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। छोटी-छोटी खराब आदतें, स्वाभाव की थोड़ी सी भी विकृति, रहन-सहन का गलत ढंग आदि सामान्य सी बातें होने पर भी वह मनुष्य की उन्नति, विकास और सफलता के मार्ग में रोड़ा बनकर खड़ी हो जाती है।
इनका सुधार न कर हम अपनी असफलताओं के दूसरे कारण गढकर स्वयं को संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं। असफलता मिलने पर हम बहुधा परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं। यह जानते हुए भी कि वर्तमान परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल वें अटल-अचल नहीं रहेगी फिर भी हम सामान्य नहीं रह पाते।
हमें दृढता के साथ यह बात मन में बैठा लेनी चाहिए कि यह तुम्हारे पुरूषार्थ की तुम्हारी साधना की परीक्षा है। उस परीक्षा में हमें असफल नहीं होना है। हम परमात्मा पथ के पथिक है। इन छोटे-छोटे कंकड़ों पत्थरों से डटकर असत्य और अकर्मण्यता के मार्ग पर नहीं चल सकते।