मुनव्वर राना नहीं रहे। वे अपने आप मरे या उन्हें वक्त ने बहुत पहले ही मार डाला ये कहना मुश्किल है। मुशायरों के लिए वे कुछ अरसा पहले ही मर चुके थे।आज उनका जिस्म मरा है।रूह तो बहुत पहले फना हो चुकी थी। राना की मौत बहुत से लोगों के लिए पहाड़ के टूटने से होने वाली आवाज की तरह भी होगी।
पांच बच्चों के बाप मुनव्वर राना मुझसे सात साल बड़े थे। वे न मेरे उस्ताद रहे और न मै उनका शागिर्द, लेकिन मैं उनका स्थाई श्रोता और पाठक अवश्य रहा।वे जब भी ग्वालियर आए उनसे मुलाकात हुई, बात हुई।वे जब मंच पर उतरे उस वक्त मुल्क में तमाम शायर पहले से मौजूद थे। उनसे बेहतर भी और उनसे कमतर भी। राना ने ऐसे ही माहौल में अपने लिए पहचान बनाई।मरते हुए रिश्तों के जरिए इंसानी अहसासात को गीला किया।वे एक नामचीन शायर थे ।
मुनव्वर राना को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला जो उन्होंने सरकार के एक फैसले से असहमत होने के विरोध में वापस कर दिया।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय जब उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए तब मुनव्वर राना के पिता ने अपने देश में रहने को ही अपना कर्तव्य माना। मुनव्वर राना की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में हुई। राना ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं। उनके लेखन की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है।
मुनव्वर राना मेरे प्रिय शायरों में से एक रहे। मैं उनसे अनेक बार मिला। मैं उनके लेखन को पसंद करता हूं।मेरी तरह बहुत से लोग उन्हें पसंद करते हैं। उनके जाने से वे सब गमजदा होंगे। उनके सामने मुनव्वर अपने शेरों की शक्ल में बार
बार आकर खड़े हो रहे होंगे।
देश में ऐसे लोगों की कमी अदब के साथ ही जम्हूरियत का भी नुक्सान है। उनके तमाम शागिर्द हैं जो उनकी तरह लिख रहे हैं लेकिन सब राना नहीं बन सकते। मैंने पहले ही कहा कि राना होना आसान नहीं।
मुनव्वर राना ने अपनी शायरी से, अपने व्यवहार से देश और देश की सरहदों के पार भी अपने चाहने वालों की एक दुनिया बनाई।उनकी दुनिया में दोस्त ज्यादा और दुश्मन बहुत कम रहे।
आज मैं उनकी शायरी पर कोई बात नहीं कर सकता। मेरी ऊपर वाले से गुजारिश है कि वह हमारे मुनव्वर को अपनी सरपरस्ती में कुबूल करे ।अंत में उनकी एक गजल उन्ही को समर्पित।
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भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है
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अगर सोने के पिंजड़े में भी रहता है तो क़ैदी है
परिंदा तो वही होता है जो आज़ाद रहता है
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चमन में घूमने फिरने के कुछ आदाब होते हैं
उधर हरगिज़ नहीं जाना उधर सय्याद रहता है
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लिपट जाती है सारे रास्तों की याद बचपन में
जिधर से भी गुज़रता हूँ मैं रस्ता याद रहता है
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हमें भी अपने अच्छे दिन अभी तक याद हैं ‘राना’
हर इक इंसान को अपना ज़माना याद रहता है ।
राकेश अचल