संसार में कुछ ऐसी मान्यताएं भी है, जो यह मानती है कि आत्मा का पुर्नजन्म नहीं होता। इसका तात्पर्य तो यह हुआ कि परमात्मा अकारण ही किसी को मनुष्य, किसी को पशु जैसे गांय, भैंस, बकरी, भेडिय़ा किसी को पक्षी तथा कीड़-मकोड़े बनाकर संसार में भेजता रहता है।
यह तो इन जीवों के प्रति अन्याय तथा भेदभाव हुआ और मनुष्यों में भी किसी को सुन्दर तो किसी को कुरूप, किसी को स्वस्थ तो किसी को रोगी, अपंग, किसी को अमीर अर्थात धन-धान्य से पूर्ण तो किसी को दीन-हीन, किन्तु ऐसा परमात्मा करता नहीं, क्योंकि परमात्मा तो न्यायकारी है, दयालु है तो वह ऐसा अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण कार्य क्यों करेगा? जो जैसा करता है वह उसी के अनुसार फल दे तभी तो उसका न्याय सही माना जायेगा।
जो व्यक्ति सेवा परोपकार आदि के अच्छे कर्म करेगा तो भविष्य में ईश्वर उसको अगला जन्म मनुष्य का ही देगा। बुरे कर्म करेंगे तो भविष्य में पशु-पक्षी, सांप, भेडिय़ा आदि योनियों में जन्म देकर अचानक दंड देगा कर्मों के अनुसार मनुष्यों में भी वर्गीकरण सुखमय, और दुखमय जीवन के रूप में होगा। इसलिए दंड और दुखों से बचने के लिए उत्तम मनुष्य योनि प्राप्त करने के लिए आज ही परोपकार आदि शुभ कर्म करे, जिससे इस जन्म का भविष्य भी और अगला जन्म भी दोनों अच्छे और सुखमय हो जायेंगे।