Wednesday, February 5, 2025

मुजफ्फरनगर में गन्ने का भाव घोषित करने की मांग को लेकर किसानों का प्रदर्शन, कचहरी का घेराव

 

 

 

मुजफ्फरनगर। गन्ना किसानों की लंबित मांगों और गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित न होने से नाराज किसानों ने मुजफ्फरनगर में मंगलवार को जिला कचहरी का घेराव किया। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेतृत्व में सैकड़ों किसान कचहरी परिसर में जुटे और अपनी आवाज बुलंद की। किसानों ने प्रशासन और सरकार से तुरंत गन्ने का भाव घोषित करने की मांग की।

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भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने आज अपने राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत देशभर के जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन किया। इस दौरान संगठन ने अपनी मांगों को लेकर जिलाधिकारियों के माध्यम से देश की राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा। यह प्रदर्शन उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड मध्य प्रदेश,हरियाणा,दिल्ली,पंजाब छत्तीसगढ़,उड़ीसा,महाराष्ट्र, राजस्थान,हरियाणा सहित अन्य राज्यों में किया गया।

 

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किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे। भाकियू के जिला अध्यक्ष ने कहा, “सरकार गन्ने का उचित मूल्य घोषित करने में देरी कर रही है, जबकि चीनी मिलें पहले ही पेराई शुरू कर चुकी हैं। किसानों को उनके हक का भुगतान समय पर नहीं हो रहा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है।”गन्ना उनकी आय का मुख्य स्रोत है, लेकिन उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि और गन्ने का उचित मूल्य तय न होने से उनकी स्थिति बदतर हो रही है। कहा कि सरकार हर साल गन्ने का भाव घोषित करने में देरी करती है, जिससे वे असमंजस की स्थिति में रहते हैं। उन्होंने ₹450 प्रति क्विंटल का भाव तय करने की मांग की। चीनी मिलों द्वारा गन्ने के भुगतान में देरी को लेकर भी किसानों में भारी आक्रोश है। किसानों ने बिजली दरों में वृद्धि और डीजल के बढ़ते दामों पर भी विरोध जताया।

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कहा कि हम मजदूर और किसान आज पूरे भारत में अपने मुद्दों को उजागर करने और निवारण की मांग के लिए विरोध कर रहे हैं। हम यह ज्ञापन आपको इस उम्मीद के साथ भेज रहे हैं कि आप देश की इन दो प्रमुख उत्पादन शक्तियों के पक्ष में हस्तक्षेप करेंगी। भारतीय किसान यूनियन विगत 38 वर्षों से देश के उस वर्ग की आवाज को उठा रही है जिसे लोकतंत्र में दबाने का काम किया जा रहा है। हताश देश का किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहा है। वर्षों के बदलने का क्रम जारी है, लेकिन किसान-मजदूर-आदिवासी-दलित-शोषित-पिछड़े वर्गों का यह संघर्ष अपने अधिकार के लिए जारी है। वर्ष 2025 शुरू हो चुका है, लेकिन कोई भी ऐसा माध्यम नजर नहीं आ रहा जिससे इन वर्गों का उत्थान हो सके।
किसानों ने 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश की राजधानी को घेरकर आन्दोलन किया। किसानों के लम्बे संघर्ष के बाद जब कृषि कानून वापस लिए गए थे, तब किसानों से किए गए वादे आज तक पूरे नहीं हुए हैं।

 

भारतीय किसान यूनियन ने देश के किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित मांगों को लेकर सरकार से आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है।

भाकियू की प्रमुख मांगें

  1. कानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी
    सभी फसलों के लिए सी2 + 50% लागत के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया जाए और इसकी खरीद कानूनी रूप से सुनिश्चित की जाए।
  2. गन्ना मूल्य और समय पर भुगतान
    उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में गन्ने का मूल्य 500 रुपये प्रति कुंतल घोषित किया जाए। इसके साथ ही, पेराई सत्र के दौरान भुगतान में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इसे डिजिटल माध्यमों से जोड़ा जाए।
  3. जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन पर ध्यान
    किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के 43 दिन से चल रहे आमरण अनशन को देखते हुए, उनकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा कर, इस मुद्दे का समाधान किया जाए।
  4. किसान ऋण माफी और आत्महत्या की रोकथाम
    किसानों की ऋणग्रस्तता को खत्म करने और आत्महत्याओं को रोकने के लिए व्यापक ऋण माफी योजना लागू की जाए।
  5. राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) और निजीकरण का विरोधसार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली का निजीकरण समाप्त किया जाए। कृषि पंपों के लिए मुफ्त बिजली और घरेलू उपयोग के लिए 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाए। प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का विरोध किया गया।
  6. डिजिटल कृषि मिशन और निगमीकरण का विरोधडिजिटल कृषि मिशन (डीएएम) और राष्ट्रीय सहयोग नीति के तहत किए गए समझौतों को रद्द किया जाए। सहकारी खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारें प्रभावी अधिनियम लागू करें।
  7. भूमि अधिग्रहण और ग्रामीण अधिकारों की रक्षा
    अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण को रोका जाए और 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून (एलएआरआर) और वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) को सख्ती से लागू किया जाए।
  8. विभाजनकारी नीतियों का विरोध
    सार्वजनिक संपत्ति के निगमीकरण और विभाजनकारी नीतियों को खत्म किया जाए, जो किसानों और समाज को प्रभावित कर रही हैं।
  9. बीज नीति और पेस्टीसाइड्स पर नियंत्रणअत्यधिक पेस्टीसाइड्स के उपयोग को रोकने के लिए बीज नीति में संशोधन किया जाए। खेती में उपयोग किए जाने वाले उपकरण और वस्तुओं को जीएसटी मुक्त किया जाए। जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) बीजों पर रोक लगाई जाए।
  10. शुगर केन कंट्रोल ऑर्डर और खांडसारी उद्योगशुगर केन कंट्रोल ऑर्डर और खांडसारी रेगुलेशन्स 2024 को रद्द किया जाए। उत्तर प्रदेश में खांडसारी उद्योगों को बचाने के लिए कदम उठाए जाएं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों पर सीधा प्रभाव डालते हैं।
  11. न्यू नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट पॉलिसी का विरोध
    नई कृषि बाजार नीति को रद्द कर, सभी किसान संगठनों से परामर्श के बाद एक प्रभावी और सर्वमान्य नीति तैयार की जाए।

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