नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकार्ड को प्रकाशित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की कथित अनदेखी का आरोप लगाकर आम आदमी पार्टी की मान्यता रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया गया है तो आपको सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।
साेमवार काे सुनवाई के दौरान जस्टिस तुषार राव गडेला ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार आदेश पारित कर दिया तो आपको वहीं अवमानना याचिका दायर करनी चाहिए। ये याचिका संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर नहीं की जा सकती है।
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याचिकाकर्ता अश्विन मुदगल ने अपनी याचिका में कहा गया था कि आम आदमी पार्टी और उसके उम्मीदवारों ने चुनावी हलफनामा में अपने आपराधिक इतिहास का कहीं जिक्र नहीं किया है। खासकर दिल्ली आबकारी घोटाला मामले का जिक्र नहीं किया गया है।
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इससे पहले 13 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दल केवल जीतने की काबिलियत के आधार पर दागी लोगों को टिकट न दें। अगर वे दागी लोगों को टिकट देते हैं तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर इसकी वजह बतानी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने दागी लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि राजनीतिक दल दागी लोगों की उम्मीदवारी तय करते ही अपनी वेबसाइट पर 48 घंटे के भीतर उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि की सूचना अपलोड करेंगे। वेबसाइट पर दागी उम्मीदवारों के अपराध की प्रकृति और उन पर लगे आरोपों की जानकारी देनी होगी। उन्हें अपनी वेबसाइट पर ये भी बताना होगा कि वे दागी उम्मीदवारों को टिकट क्यों दे रहे हैं। उम्मीदवारों की जानकारी देते समय ये नहीं बताना चाहिए कि वे चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश के अनुपालन की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।