आदमी को थोडा सा लाभ क्या मिला वह फूलकर कुप्पा हो गया, जैसे उसे कुबेर का खजाना मिल गया है। अब हम बहुत बड़े हो गये, बड़े लोगों में गिनती होने लगी, पर पतन होते भी तो देर नहीं लगती। थोडी सी हानि होते ही चित्कार मच जाता है कि हम मिट गये, बर्बाद हो गये। मनुष्य जीवन को झूला माने, आगे आये तो भी खुशी, पीछे जाये तो भी आनन्द। उतार हो या चढाव अपना संतुलन बनाये रखना जरूरी है। हर किसी के जीवन में हानि-लाभ, सफलता-असफलता, दिन-रात, दुख-सुख, श्वास का आना श्वास का जाना तो लगा ही रहता है। जिस किसी को भी जीवन मिला है तो मृत्यु का मुंह भी देखना होगा, इसलिए जीवन को खिलाडी की खेल भावना की भांति लेना चाहिए। जीतने पर अति हर्ष और हारने पर शोक में मत डूबिये। अपनी ही क्रियाओं के कारण उदास क्यों होते हो। जीवन ऐसा जियो कि खुशी में मदहोश न हों और शोक में पागल न हो। स्मरणीय यह भी है कि व्यक्ति के जीवन में जब प्रभु कृपा के फूल लगते हैं तो उसकी महक दूर-दूर तक फैलने लगती है, जैसे बसंत में हवा के झोको में मादकता आती है ऐसा ही व्यक्ति के जीवन में बसंत का प्रभाव दिखाई देने लगता है मानो प्याले में सागर समा गया हो। बुद्धिमान वे हैं जो इस स्थिति को सम्भाले रखते हैं। प्रभु का धन्यवाद करते हैं अथवा अधिकांश तो उन्माद में आ जाते हैं, अहंकार करने लगते हैं कि ये उपलब्धियां मेरे पुरूषार्थ और मेरी बुद्धि के कारण हुई, जो उनकी अवनति का कारण बन जाती है।