समस्तीपुर। बिहार के समस्तीपुर जिले में होली का रंग कुछ खास होता है। यहां की छाता होली नामक परंपरा लोगों में विशेष उत्साह और उमंग भर देती है। कहा जाता है कि यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है और इसकी प्रेरणा उत्तर प्रदेश के बरसाना में खेली जाने वाली प्रसिद्ध लठमार होली से मिली है।
छाता होली में पुरुष छाते लेकर रंगों की बारिश से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं, जबकि महिलाएं उन पर रंग और गुलाल बरसाती हैं। इस दौरान पूरा माहौल रंगों और हंसी-मजाक से सराबोर हो जाता है।
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स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत तब हुई थी जब समस्तीपुर के कुछ लोग बरसाना गए और वहां की लठमार होली से प्रभावित होकर इसे अपने अंदाज में अपनाया। छाते का उपयोग प्रतीकात्मक रूप से खुद को रंगों से बचाने के लिए किया जाता है, हालांकि कोई इसमें बच नहीं पाता और हर कोई रंगों में सराबोर हो जाता है।
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समस्तीपुर की छाता होली न केवल रंगों का उत्सव है, बल्कि प्रेम, भाईचारे और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। हर साल यहां सैकड़ों लोग इस अनोखी होली का हिस्सा बनने के लिए उमड़ पड़ते हैं, जिससे समस्तीपुर की यह परंपरा पूरे देश में प्रसिद्ध हो गई है।