मेरठ। हाल में मेरठ प्रशासन ने सड़कों पर नमाज़ पढ़ने पर रोक लगा दी और इसका उल्लंघन करने पर मुक़दमा दर्ज़ करने के साथ पासपोर्ट और शस्त्र लइसेंस रद्द करने की चेतावनी दी गई। दिल्ली में भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने कहा कि नमाज मस्जिद में पढ़ना चाहिए, सड़क पर नमाज पढ़कर लोगों को परेशान करना ग़लत है। नमाज़ के लिए उचित स्थान मस्जिद है, न कि सड़क, फिर भी कुछ स्थानों पर लोग बिना सोचे-समझे मस्जिद से बाहर सड़क पर सफें बना लेते हैं। शरियत ने किसी को यह अनुमति नहीं दी है कि वह राहगीरों का रास्ता रोककर नमाज़ पढ़ने लगे। ये बातें जामिया मिलिया इस्लामिया की इनशा वारसी ने कही। मेरठ में एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंची इनशा वारसी से जब इस बारे में पूछा गया कि क्या सड़क पर नमाज पढ़ा जाना उचित है तो उन्होंने इसको सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिए जिम्मेदार मस्जिद प्रबंधन समिति हैं। उनकों सड़क पर नमाज पढ़े जाने से लोगों को रोकना चाहिए।
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उन्होंने कहा कि मेरठ समेत दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में यह एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इस समस्या का सीधा ज़िम्मेदार मस्जिद प्रबंधन समिति है, न कि कोई सरकार। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद या इमाम काउंसिल को राष्ट्रीय स्तर पर यह घोषणा करनी चाहिए कि किसी भी शहर में मस्जिद के बाहर सड़क पर नमाज़ न पढ़ी जाए। इस घोषणा को लगातार दो-तीन जुमे की नमाज़ में देशभर की मस्जिदों में दोहराया जाना चाहिए। यदि मस्जिद में स्थान की कमी है, तो एक ही मस्जिद में दो बार जुमे की नमाज़ पढ़ी जा सकती है या अन्य कोई वैकल्पिक उपाय निकाला जा सकता है। ऐसे मौकों पर उलेमा और समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों को आगे आकर व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करना चाहिए। यह कहना कि “अगर हिंदू लोग सड़कों पर धार्मिक आयोजन कर सकते हैं, तो हम भी करेंगे,” एक उचित तर्क नहीं है। यह याद रखने की ज़रूरत है कि भारतीय मुसलमानों के धार्मिक नियम शरियत से तय होते हैं, न कि किसी अन्य समुदाय के रीति-रिवाजों से। अगर भारतीय मुसलमान खुद से इस समस्या का समाधान नहीं निकालते, तो सरकार इसमें हस्तक्षेप करेगी। जिस प्रकार तीन तलाक और लाउडस्पीकर पर अज़ान जैसे मुद्दे हमारी तरफ से हल नहीं हुए, तो सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया, उसी तरह सड़क पर नमाज़ का मुद्दा भी यदि हल नहीं हुआ, तो सरकार इसमें दखल देगी। इससे देशभर में नकारात्मक माहौल बनेगा और इस्लाम की गलत छवि प्रस्तुत होगी। स्थिति की गंभीरता इस हद तक बढ़ गई है कि कुछ लोग चलती ट्रेन के स्लीपर कोच में भी जमात बनाकर नमाज़ पढ़ते हैं, जबकि वहां लोगों की आवाजाही बनी रहती है। यह कोई बुज़ुर्गी या इबादत में श्रेष्ठता की मिसाल नहीं है। आपके पास विकल्प मौजूद हैं- आप अपनी सीट या बर्थ पर बैठकर भी फ़र्ज़ अदा कर सकते हैं। देवबंद के उलेमा भी रोड पर नमाज पढ़ना सही नहीं बताते हैं।
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उन्होंने कहा कि नमाज़ या इबादत एक व्यक्तिगत मामला है। किसी को यह हक़ नहीं कि अपनी इबादत के लिए दूसरों को परेशानी में डाले, यहाँ तक कि आने-जाने का रास्ता बंद हो जाए। इस्लाम मुहब्बत अमन और भाईचारे की एक बेहतरीन मिसाल है। भारतीय मुसलमानों की ये जिम्मेदारी है के इस्लाम का सच्चा चेहरा ग़ैर मुसलमानों के सामने लाएं, जिसमे पडोसी के हक़ की बात भी हो और राहगीरों के लिए रास्ता आसान करने की बात भी। हम सभी को, एक जिम्मेदार नागरिक की तरह, शांतिपूर्ण माहौल बनाने के लिए प्रशासन का समर्थन करना चहिये।