मेरठ । भले ही समाजवादी पार्टी की मंशा इस बार मेरठ महापौर का चुनाव जीतने की हो, लेकिन सपा के दिग्गज नेताओं के चुनाव प्रचार से किनारा करने पर हालात खराब हो गए हैं। सपा उम्मीदवार सीमा प्रधान के चुनाव प्रचार की कमान अकेले उनके पति सरधना विधायक अतुल प्रधान ने संभाली हुई है। सपा की गुटबाजी को भाजपा अपने लिए वरदान मान रही है।
मेरठ नगर निगम में महापौर पद पर भाजपा ने पूर्व महापौर हरिकांत अहलूवालिया, बसपा ने हशमत मलिक, कांग्रेस ने नसीम कुरैशी, आप ने रिचा सिंह को उम्मीदवार बनाया है तो सपा ने सरधना के तेजतर्रार विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को उम्मीदवार घोषित किया है। इससे सपा के तमाम दिग्गजों को करारा झटका लगा।
मेरठ शहर विधायक रफीक अंसारी अपनी पत्नी के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे थे, जबकि पूर्व जिलाध्यक्ष राजपाल सिंह खुद टिकट के लिए ताल ठोंक रहे थे। सीमा प्रधान को टिकट मिलने के बाद सपा के मेरठ जनपद के सभी दिग्गजों ने चुनाव प्रचार से अपने हाथ खींच लिए हैं। अब सपा उम्मीदवार के चुनाव प्रचार की कमान उनके विधायक पति ने संभाली हुई है। निवर्तमान महापौर सुनीता वर्मा और उनके पूर्व विधायक पति योगेश वर्मा की गिनती दलित समाज के बड़े नेताओं में होती है। वे भी सपा उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार से बाहर हैं। पूर्व मंत्री और किठौर विधायक शाहिद मंजूर भी चुनाव प्रचार से बाहर है। शहर विधायक रफीक अंसारी भी सपा उम्मीदवार के लिए वोट नहीं मांग रहे हैं। इसी तरह से सपा नेता रहे अब सिवालखास से रालोद विधायक गुलाम मोहम्मद भी शांत है। सपा के दिग्गजों से अतुल प्रधान की नाराजगी के कारण ऐसा हो रहा है।
शहर विधायक रफीक अंसारी अपनी नाराजगी छिपा नहीं पा रहे हैं। उनका कहना है कि मेरे गढ़ में मुझे न बताकर रोड शो निकाल कर मेरा अपमान किया गया। चुनाव सभी को साथ लेकर लड़ा जाता है। ऐसी ही उपेक्षा किठौर विधायक शाहिद मंजूर की भी की गई। शाहिद मंजूर के आवास से कुछ कदमों की दूरी पर हुई सभा में भी उन्हें नहीं पूछा गया। इससे शाहिद मंजूर की नाराजगी बढ़ी है। सपा के दिग्गज मुस्लिम नेताओं की उम्मीदवार सीमा प्रधान से नाराजगी चुनाव में भी गुल खिला सकती है।
मेरठ में जातियों में बंटकर मतदान करता है मुस्लिम
मेरठ में मुस्लिमों के मतदान के पैटर्न को देखने पर साफ होता है कि यहां का मुस्लिम मतदाता जातीय प्रभाव में आकर मतदान करता रहा है। मेरठ नगर निगम के चुनाव में लगभग चार लाख मुस्लिम समाज के मतदाता है। इनमें से अंसारी बिरादरी लगभग एक लाख है। विधायक रफीक अंसारी की नाराजगी चुनाव में रंग दिखा सकती है। इसी तरह से निवर्तमान महापौर सुनीता वर्मा की खामोशी भी सपा के लिए मुसीबत बन सकती है और भाजपा उम्मीदवार के लिए वरदान साबित हो सकती है।
अतुल की एकला चलो की नीति पड़ेगी भारी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरधना विधायक अतुल प्रधान ने जिस तरह से सपा के दिग्गजों को अपने चुनाव प्रचार से दूर कर दिया है। उसका नुकसान सपा उम्मीदवार को हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेंद्र कुमार बताते हैं कि दलित मतदाताओं का बसपा से मोह भंग हो चुका है। ऐसे में सपा उम्मीदवार के पास दलितों को अपने पाले में करने का मौका था, लेकिन महापौर सुनीता वर्मा और पूर्व विधायक योगेश वर्मा को चुनाव प्रचार में उपयोग नहीं करने की वजह से दलितों का एक हिस्सा भाजपा के पक्ष में जाने की संभावना है। इसी तरह से रफीक अंसारी की नाराजगी भी रंग दिखाएगी।
भाजपा को हो सकता है फायदा
कहने के लिए सपा-रालोद गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ रहा है, लेकिन दोनों दलों के उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव लड़ रहे हैं। रालोद मुखिया जयंत सिंह ने भी सपा उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार से हाथ खींच लिए हैं, ऐसे में जाट वोटरों के भाजपा और आप की जाट उम्मीदवार रिचा सिंह के पक्ष में जाने के आसार हैं। मुस्लिम मत भी सपा, बसपा और कांग्रेस की ओर जाने की संभावना है। इसका सीधा फायदा भाजपा उम्मीदवार हरिकांत अहलूवालिया को मिलेगा। इसी तरह से दलित मतों में बिखराव की संभावना बन रही है।