यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया- ‘सुखी कौन है?’ युधिष्ठिर उत्तर देते हैं कि वह व्यक्ति सदा सुख भोगेगा, जिसके पास शील स्वभाव है। किन्तु स्वभाव में शीलता आये कैसे?
शील को पैदा करने के लिए सहन शक्ति बढ़ानी पड़ती है। इसके लिए महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति ‘सेवा’ को महत्व दे। दिनभर आप अपने और अपने परिवार के काम करते हैं, एक काम परोपकार का भगवान के निमित्त भी कीजिए। आप मंदिर जाते हैं, गुरूद्वारा जाते हैं या अन्य किसी पूजा स्थल में जाते हैं, वहां आधा घंटा-एक घंटा भगवान की भक्ति में लगाते हैं। इसके सापेक्ष आप किसी कारण से मंदिर नहीं जा पाते कोई बात नहीं, किसी दीन-दुखी की सेवा के लिए कुछ समय दें। किसी रोते के आंसू पोंछे, अस्पताल जाकर रोगियों की सेवा कीजिए, किसी भटके को राह दिखायें।
विवाह शादियों में बहुत बड़ी फिजुलखची हो रही है, आतिशबाजी में धन फूंका जा रहा है, यह पाप है। क्योंकि उससे प्रदूषण बढ़ रहा है, रोग बढ़ रहे हैं, व्यर्थ में ही भांति-भांति के व्यंजन बनाये जा रहे हैं, छके हुओं को ही छकाया जा रहा है। यदि विवाह समारोहों में आधी फिजुलखर्ची रोककर गरीब कन्याओं के विवाह कराये जायें तो यह भगवान की सेवा होगी, भक्ति होगी।
परोपकार के सभी कार्य भगवान को अर्पित होते हैं। इसलिए वे प्रभु भक्ति के अन्तर्गत आते हैं, बल्कि भगवान की सच्ची भक्ति भी यही है।