आज संत कबीर की जयंती है। कबीर को परमात्मा को देखने की ज्ञानमयी दृष्टि गुरू रामानन्द जी की कृपा से प्राप्त हुई थी। वे ईश्वर चर्चा तो पहले भी करते थे, किन्तु ज्ञानमयी दृष्टि जब तक प्राप्त नहीं हुई जीवन में अधूरा पन बना रहा।
संत कबीर ने यह अवस्था स्वयं प्राप्त की फिर औरों को संदेश दिया। यदि उन्हें गुरू रामान्न्द न मिलते तो उनके जीवन में क्रांति घटित न होती। गुरू कृपा हुई तो वे परमात्मा का साक्षात्कार कर सके।
परमात्मा का साक्षात्कार जीवन की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है, जिस प्रभु की धर्म ग्रंथों में चर्चा है उसके गुणों का बखान है उसे ज्ञान दृष्टि से देख लिया। उसकी विशालता की अनुभूति कर ली फिर संसार को बताया कि उसे जाने बिना भटकन में रहोगे, मंजिल प्राप्त नहीं होगी। यही ज्ञानमय दृष्टि दयानन्द को विरजानन्द से, विवेकानन्द को रामकृष्ण से, मीराबाई को गुरू रविदास से प्राप्त हुई।
जिस जिसको भी वह दृष्टि प्राप्त हुई फिर वह कह उठा कि जिधर देखता हूं, उधर तू ही तू है, हर शय में जलवा तेरा हुबहु है। इंसान अपनी अज्ञानता के कारण परमात्मा के नामों तक ही सीमित रहता है। जब वह जान लेता है कि परमात्मा घट-घट में व्याप्त है, तो उसकी अज्ञानता समाप्त हो जाती है।