मुजफ्फरनगर। हिंदी और उर्दू साहित्य को समर्पित संस्था ‘समर्पण’ द्वारा एक भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन शाकुंतलम कॉलोनी में किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर अब्दुल हक़ सह़र ने की, जबकि संचालन का दायित्व डॉ. आस मोहम्मद अमीन ने निभाया।
कार्यक्रम में डॉ. सहदेव सिंह आर्य विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि मुख्य अतिथि श्रीमती डॉ. पुष्प लता (अधिवक्ता) थीं।
डीएम ने मरीजों को मिलाया फ़ोन तो खुल गई सरकारी अस्पताल की पोल!
अतिथि डॉ. राहुल कुशवाहा ने मंच की सराहना करते हुए कहा कि “साहित्य ही वह माध्यम है जो सभी धर्मों और समुदायों को एक सूत्र में पिरो सकता है। निर्बाध कलम के धनी साहित्यकार ही ऐसे मंचों की रचना कर समाज में सौहार्द्र का संदेश प्रसारित करते हैं।” उनकी विचारोत्तेजक वाणी ने सदन में जोश भर दिया और उनकी बातें तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सराही गईं।
गोष्ठी में अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं और साहित्य की इस अनुपम संध्या को यादगार बनाया।
गोष्ठी के आयोजक योगेन्द्र सोम रहे। और प्रकाशक विनोद वत्स के आने से गोष्ठी की गरिमा बढ़ी ।
*वरिष्ठ साहित्यकारा विजया गुप्ता का गीत-
“परम पुनीत प्रेम प्रिय को प्रकट करो सद्भाव से
एक निष्ठ हो तव समर्पण दूर रहो दुर्भाव से”
एडवोकेट पुष्पलता की मधुर आवाज में गाई रचना की दो पंक्तियाँ-
“ये ज़मीं बदल गई आसमाँ बदल गया
ज़िंदगी का यूं लगा पहरुआ बदल गया ”
*अध्यक्षता कर रहे शायर अब्दुल हक़ सहर ने फ़रमाया ,
“लोग देखें तो देखते ही रहें ,
चहरा लेकर तू आईने से निकल”
*सलामत राही की सुन्दर रचना-
” भीड़ इतनी है के खुलकर साँस भी आती नहीं,
जिन्दगी दुनिया के मेले में सुकूँ पाती नहीं ”
*डाॅ आस मुहम्मद अमीन-
“उनको काँटे की तरह चुभता है हर शेअर मिरा
मिरे अशआर जो ख़ुश हो के सुना करते थे”
*गीतकार ईश्वर दयाल गुप्ता ने समर्पण संस्था के सदस्यों को बसन्त की फुलवारी से संबोधित किया और एक मुक्तक सुनाया !
*योगेन्द्र सोम
“धरती की छाती पे बहता है जल
जीवन है नदिया ओ साथी चल”
*डाॅ सहदेव आर्य
“जन्नतें महमाँ मैं बन गया
मुश्किलें और बढ़ गई ”
*विनोद वत्स ने अपना संस्मरण सुनाया जिसे सुन कर गांव से जुड़ा हर शख्स ऐसे शख्स की कल्पना में खो गया ,
*मुस्तफा कमाल-
“है गंगा मैया तेरे द्वारे आए हैं
श्रद्धा सुमन अपने साथ लाए हैं”
* लईक़ खां की बेहतरीन आवाज़ और रचना सुनकर श्रोता झूम उठे ،
” हर कोई उलझा हुआ है उलझनों के जाल में ”
सचिव समर्पण,सुनीता मलिक सोलंकी-
” आदमी के कर्म उसे जिन्दा बादरखते हैं
जिन्दगी के फर्ज निभे, उन्वान रखते है”
डॉ पुष्प लता की पुस्तक गीतायन का विमोचन होना बेहद महत्वपूर्ण रहा। सुनीता मलिक सोलंकी ने पुष्प लता को माल्यार्पण कर अपनी पुस्तक “संकरात की खिचड़ी”भी भेंट की। और डाॅ सहदेव सिंह को संस्था ने शाॅल पहना कर स्वागत किया । सुनीता मलिक सोलंकी ने अपनी पुस्तक “और खामोशी बोलने लगी” भेंट की।
संयोजक योगेंद्र सोम ने आदर सत्कार से सभी कवियों गज़लकारों कथाकारों का स्वागत और धन्यवाद किया।