जयपुर। राजस्थान की राजनीतिक गतिशीलता हर पांच साल में बदलती रहती है। यहां हर पांच साल में कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सरकार बनाती रही है। हालांकि, दो राजनीतिक रंगों के प्रभुत्व वाली राजनीतिक गतिशीलता राज्य की सभी 200 सीटों पर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए आप, आरएलपी और बीएसपी जैसी पार्टियों की घोषणा के बाद बदलती दिख रही है।
इसी तरह असदुद्दीन ओवैसी जैसे राजनीतिक खिलाड़ी और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) जैसी पार्टियों ने भी आगामी चुनाव को दिलचस्प बनाते हुए मैदान में कूदने की घोषणा की है।
इसके अलावा संयुक्त विपक्ष का गठबंधन ‘इंडिया’ है, जो राजस्थान में राजनीतिक समीकरणों को अलग बनाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
बहुजन समाज पार्टी ने सभी 200 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। पार्टी के छह विधायक दलबदलू साबित हुए हैं। पिछले दो कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। बसपा के निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दल के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं, जो इंडिया का हिस्सा हैं और भाजपा को चुनौती दे रही है।
इसी तरह नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के तीन विधायक हैं और उसने सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
आरएलपी बीजेपी की सहयोगी थी। लेकिन, कृषि कानून विवाद के कारण उनकी राहें अलग हो गईं और फिलहाल हनुमान बेनीवाल अपनी पार्टी में अकेले पारी खेल रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी का सदस्यता अभियान 31 जुलाई से 31 अगस्त तक चल रहा है। इस अभियान को लेकर पूरे राज्य में उत्साह है। पार्टी के नेता राज्य का दौरा कर रहे हैं। हम बारीकी से नजर रख रहे हैं और फीडबैक भी ले रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी कार्य समिति भी जल्द ही लॉन्च की जाएगी। हालांकि, उन्होंने आरएलपी के इंडिया गठबंधन से हाथ मिलाने पर चुप्पी साध ली।
आप प्रवक्ता योगेन्द्र गुप्ता ने कहा कि हमारी बैठक इस सप्ताह होगी, जहां हम चुनावों के लिए की जाने वाली बड़ी पहलों पर चर्चा करेंगे। हमारी टीम तैयार है, जमीनी स्तर पर सर्वे किया जा रहा है। इंडिया समूह से गठबंधन करके हम बीजेपी को करारा जवाब देंगे।
उन्होंने कहा कि बांटो और राज करो की राजनीति के कारण बीजेपी राजस्थान में जीत रही है। इस बार विपक्ष एकजुट है। भाजपा के पास लगभग 36 प्रतिशत वोट शेयर हैं। जबकि, विपक्ष के पास 63 प्रतिशत का संयुक्त वोट शेयर है।
इन सबसे बीच भाजपा विभाजित स्थिति में है। केवल प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक रैलियों को संबोधित करने के लिए कुछ मौकों पर राज्य का दौरा कर रहे हैं।
पार्टी के नेता अति आत्मविश्वास में हैं और हर पांच साल के बाद सत्ता हस्तांतरित होने की राजनीतिक प्रवृत्ति पर भरोसा करते हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस खेमे में भी सबकुछ ठीक नहीं है। लंबे समय से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच दरार बनी हुई है।
राहुल गांधी की हाल की राज्य यात्रा के दौरान सचिन पायलट को पहले बोलने के लिए आमंत्रित किया गया तो सवाल उठाए गए। राहुल गांधी का अशोक गहलोत के करीब न बैठना इस बात की ओर इशारा करता है कि आलाकमान की दिलचस्पी कहां है। तीनों नेताओं की एक साथ ली गई कोई तस्वीर भी नहीं थी जैसा कि अतीत में कई मौकों पर देखा जा चुका है।
एक कांग्रेस नेता ने कहा कि ऐसा लगता है कि हाईकमान का संदेश है कि पायलट को पहले बोलना चाहिए क्योंकि वह उन्हें एक संपत्ति मानता है, इसलिए उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा में मनमुटाव गहरा रहा है। कांग्रेस भी अपने संकट से गुजर रही है, ऐसे में आम आदमी पार्टी राज्य में पैठ बना सकती है।
असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोटों को पार्टी से छीनकर कांग्रेस को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे परोक्ष रूप से बीजेपी को भी मदद मिल सकती है।
राज्य में छोटे राजनीतिक दलों की पैठ को देखते हुए इस बार का विधानसभा चुनाव अब भारत के इस राज्य में दो दलों के लिए राजनीतिक गतिशीलता नहीं रह गया है।