संभल। उत्तर प्रदेश का संभल जिला इन दिनों सियासी हलचलों का केंद्र बना हुआ है। पिछले महीने धर्मस्थल के सर्वे के दौरान हुई हिंसा के बाद से सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने सियासी दांव खेल रहे हैं। इस घटनाक्रम के बाद संभल को मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण सियासी प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और हिंसा के एक महीने बाद अपना प्रतिनिधिमंडल भेजने का निर्णय लिया है।
संभल हिंसा के पीड़ितों से मुलाकात करने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) ने 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया है। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय करेंगे। प्रतिनिधिमंडल शाही जामा मस्जिद सर्वे के दौरान हुई हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों से मिलने और उन्हें पांच-पांच लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने के लिए संभल पहुंच रहा है। इसके अलावा, यह प्रतिनिधिमंडल हिंसा की साजिशों की जांच भी करेगा और रिपोर्ट लखनऊ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव को सौंपेगा।
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उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक का महत्व काफी अधिक है, और सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसे लेकर सतर्क हो गए हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को मुस्लिमों का भारी समर्थन मिला था, जिससे पार्टी की ताकत बढ़ी और वह तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। इस चुनावी दृष्टि से संभल हिंसा को लेकर अखिलेश यादव ने सपा की सियासी मजबूरी को समझते हुए मुस्लिमों के बीच अपनी छवि मजबूत करने की कोशिश की है।
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संभल हिंसा के बाद कांग्रेस भी पीड़ितों के साथ खड़ी नजर आई। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने दिल्ली में पीड़ितों से मुलाकात की और उनके लिए समर्थन व्यक्त किया। इसके जवाब में, सपा ने भी मुस्लिम वोटों को साधने की कोशिश की, ताकि वह कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से आगे निकल सके।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का वोट सपा के लिए बेहद अहम है। यदि मुस्लिम वोट बैंक सपा से छिटककर कांग्रेस या बसपा जैसे दलों में चला जाता है, तो इससे अखिलेश यादव की सियासी स्थिति पर संकट आ सकता है। इस वजह से सपा को मुस्लिम समुदाय को अपने साथ बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने हमेशा मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की थी और उनकी सियासत का एक अहम हिस्सा मुस्लिमों के मुद्दों पर ध्यान देना था। अखिलेश यादव ने अपने पिता के इस सियासी दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया, लेकिन समय-समय पर कुछ मुद्दों पर वह खुलकर सामने नहीं आए, जैसे कि सीएए, एनआरसी और मुस्लिमों के घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई। अब वह संभल हिंसा पर आक्रामक तेवर अपना रहे हैं, ताकि मुस्लिम समुदाय को यह संदेश दिया जा सके कि सपा उनके साथ खड़ी है।
अखिलेश यादव ने संभल हिंसा पर अपना रुख साफ किया और अब उन्होंने इस मामले को उठाकर सपा की सियासत को और मजबूती देने की कोशिश की है। उनके द्वारा भेजे गए प्रतिनिधिमंडल के जरिए सपा पीड़ितों के साथ खड़ी दिख रही है और इस मुद्दे को अपनी सियासत में उठाकर मुस्लिम वोटों को साधने की रणनीति अपनाई जा रही है।