बहुत समय पहले की बात है, एक राजा था। एक दिन उसने मंत्री से कहा कि राज्य सभा की बैठक के लिए एक बड़ा भवन बनवाया जाए। राजा के हुक्म होते ही कुछ ही दिनों में भवन का निर्माण हो गया।
उद्घाटन का दिन आया, चारों ओर धूमधाम थी। मंत्री, सेनापति, कोतवाल, दरबारी सबके साथ राजा भवन में दाखिल हुए लेकिन यह क्या? उसमें जरा सी भी रोशनी नहीं हो रही थी। चारों ओर अंधेरा था।
राजा ने गुस्से से पूछा, ‘किसने यह भवन बनवाया है? रोशनी तो नाममात्र की भी नहीं है। ऐसे में सभा कैसे होगी?’
सब अवाक खड़े थे। राजा ने मंत्री से कहा, ‘इसमें रोशनी का इंतजाम करो।’
मंत्री अपने को बहुत बुद्धिमान समझते थे। बोले, ‘महाराज, रोशनी अभी आ जाती है।’ फिर अन्य लोगों से बोले, ‘ऐसा करो, अंदर से मुट्ठी भर अंधेरा ले चलो और बाहर से एक-एक मुट्ठी धूप ले आओ। चारों ओर रोशनी हो जाएगी।’
लोगों ने अंदर मुट्ठी बांधी और बाहर जा कर खोल दी। बाहर से फिर मुट्ठी बंद की और अंदर जा कर खोल दी लेकिन हालत फिर भी वैसी रही। वैसा ही अंधेरा छाया रहा। उस अंधेरे में धूप थी ही नहीं।
राजा ने क्रोधित स्वर में पूछा, ‘मंत्रीजी, भवन में धूप कहां आई?’
मंत्री ने उत्तर दिया, ‘जी, मुट्ठी के छिद्रों में से निकल गई।’
राजा ने कहा, ‘जैसे भी हो, धूप का इंतजाम करो।’
मंत्री ने फिर बुद्धि का प्रदर्शन करते हुए कहा, ‘महाराज छत निकलवा देते हैं।’
हुक्म होते ही राजमिस्त्री आए। मजदूरों ने अपना कमाल दिखाया और छत हटवा दी। चारों ओर रोशनी ही रोशनी फैल गई। सब बहुत प्रसन्न हुए। राज्य सभा बैठी। अचानक आकाश में बादल छा गए। देखते ही देखते बारिश शुरू हो गई और वहां बैठे सभी लोग भीगने लगे। राजा ने कहा, ‘मंत्रीजी, छत निकालने से कोई फायदा नहीं हुआ।’
बेचारा मंत्री सोच में पड़ गया। इतने में दरबारी ने कहा, ‘एक काम हो सकता है महाराज। छत को हिफाजत से रख दें। जब बारिश हो उसे ढक दें, बाद में उतार कर रख लें।’
मंत्री ने सोचा, इससे तो मैं राजा की निगाह में छोटा हो जाऊंगा। वह बोला, ‘महाराज, ऐसा तो मैंने भी सोचा था लेकिन अगर दिन में बारिश हो तो अंधेरे में काम कैसे होगा?’
‘फिर क्या करें?’ राजा ने पूछा।
दरबारी बोला, ‘उस दिन छुट्टी हो जाएगी।’ राजा मान गए।
एक बार ऐसा हुआ कि जब सभा हो रही थी, उस समय बाहर बादल आ गए। कड़-कड़ बिजली चमकने लगी, पानी बरसने लगा, राजा देख रहे थे। अचानक उन्हें दीवार की एक दरार से बिजली की चमक दिखाई पड़ी। उस चमक से बाहर का दृश्य बहुत सुंदर लगा। राजा को एक उपाय सूझा, ‘मंत्रीजी, एक उपाय मिल गया।’
‘क्या महाराज?’ सबने उत्सुकता से पूछा।
राजा ने कहा, ‘दीवारों में से कहीं-कहीं से ईंटें निकलवा कर सुराख बनवा दो, रोशनी तो आएगी ही, साथ ही हवा भी।’
राजा के कहने के अनुसार वैसा ही किया गया। उनकी मुश्किल आसान हो गई। इस तरह से खिड़की और रोशनदान का जन्म हुआ। लोग आज भी रोशनी और हवा के लिए घरों की दीवारों में खिड़कियां और रोशनदान बनवाते हैं।
– नरेंद्र देवांगन