Sunday, April 13, 2025

सहारनपुर में आज से शुरू होगा ‘चमार चौदस’ मेला, मां बाला सुंदरी के दर्शन को लगेगा श्रद्धालुओं का तांता

सहारनपुर- सहारनपुर जिले के देवबंद में देवीकुंड के विशाल मैदान में दस अप्रैल से शुरु होने वाले चमार चौदस मेले के दौरान शक्तिपीठ माँ श्रीत्रिपुर बाला सुंदरी के दर्शन पूजन को लाखों श्रद्धालु आयेंगे।

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हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से शुरु होकर 20 दिन तक चलने वाला मेला इस बार 10 अप्रैल को शुरु होगा। जिसका उदघाटन लोक निर्माण राज्यमंत्री बृजेश सिंह और जिलाधिकारी मनीष बंसल मंदिर में बाला सुंदरी देवी की पूजा अर्चना कर करेंगे। इस मेले का प्रबंध नगरपालिका देवबंद करती है।

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चेयरमैन विपिन गर्ग ने आज बताया कि मेले की सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली गई है। उन्होंने बताया कि 11 अप्रैल को चौदस है। तीन लाख लोगों के देवी दर्शन कर प्रसाद चढ़ाने एवं मनोकामना पूर्ण करने की उम्मीद है। मेले में पहले तीन दिन देवी पूजा का विधान है।

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मेला चेयरमैन महिला सभासद महक चौहान और मेला प्रभारी विकास चौधरी बनाए गए हैं। कई कारणों से मेला संवेदनशील समय में हो रहा है, इसलिए सुरक्षा प्रबंध कड़े रहेंगे। देवी मंदिर और इस प्राचीन मेले की सबसे खास बात यह है कि महात्मा गांधी ने देश में अछूतोद्धार आंदोलन चला रहे थे, उससे भी पहले से यहां मंदिर में प्रवेश और देवी की पूजा का अधिकार दलितों को प्राप्त था। इस पर गांधी ने यहां उच्च वर्ग (सवर्णो) की सराहना भी की थी। दलित पूरे भक्तिभाव से देवी मंदिर में पूजा करते हैं और बढ़ चढ़कर मेले में सहभागिता करते हैं।

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मराठों ने अतीत में इस स्थल का जीर्णोद्धार भी कराया था। अज्ञातवास काल में पांचों पांडों ने युधिष्ठिर की अगुवाई में और द्रौपदी संग देवी के घने वनों के बीच काफी समय व्यतीत किया था और शक्तिपीठ को पूजा कर कौरवों से जीत की मनौति भी मांगी थी।
श्री त्रिपुर बाला सुंदरी का अपने आप में विशिष्ट महत्व है। त्रिपुर का अर्थ है- तीन लोक- स्वर्ग, भूलोक और पाताल में जो सबसे सुंदर, दैदिप्यमान और अतुलनीय है, वह शक्ति, चेतना और विवेक की प्रतीक है, यहां मंदिर में विराजमान देवी के इस रूप को ही त्रिपुर बाला सुंदरी कहा जाता है।

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देवबंद में मंदिर स्थल पर मां सती का गुप्तांग गिरा था जो एक पिंड के रूप में यहां स्थित है उसे तांबे के एक क्लश से ढक कर रखा जाता है। इस स्थिति में ही उसकी पूजा होती है। देवी के पिंड को खुली आंखों से देखना वर्जित है। पुजारी भी देवी के इसी रूप की पूजा करते है। इसी कारण यहां देवी को भगवती भी कहा जाता है।
नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी डा धीरेंद्र कुमार राय ने बताया कि 20 दिन की मेला अवधि में मेले के पंडाल में भगवती जागरण, कवि सम्मेलन, कव्वाली, मुशायरा एवं अनेक मनोरम सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

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