उद्धार की इच्छा है, कल्याण की कामना है तो प्रभुमय हो जाओ अर्थात प्रभु की स्तुति करो, उसी से प्रार्थना करो, उसी की उपासना करो। उपासना से तात्पर्य है प्रभु के निकट बैठना। जब हम प्रभु के समीप होते हैं, तो संसार की समस्त उलझनों से मुक्त हो जाते हैं।
जो हमें प्राप्त है, उस सबका मोह त्याग कर ही हम प्रभु की निकटता पा सकते हैं। उस समय हम न मां होते हैं न बाप, न बेटा, न बेटी, न सास, न बहु, न अधिकारी, न व्यवसायी, न अमीर, न गरीब, न हिन्दू, न मुस्लिम।
उस समय हम केवल आत्म स्वरूप होते हैं, क्योंकि ये पद नाम इस शरीर के हैं, आत्मा के नहीं। मोह त्यागने का अर्थ संसार को त्यागना नहीं। संसार में रहो पर संसार को अपने अंदर न आने दो। सांसारिक पदार्थों का प्रयोग तो अवश्य करो, क्योंकि परमात्मा ने उन्हें बनाया ही प्रयोग के लिए हैं, परन्तु उन्हीं में रम जाना दुख का कारक है, क्योंकि मोह की जंजीर से बंधा हुआ जीवन बार-बार जन्मता और मरता है।
मोह के कारण ही बहुमूल्य मनुष्य जीवन नष्ट हो जाता है। लोक तो बिगड़ता ही है, परलोक भी बिगड़ जाता है।