प्राय: देखने में आता है कि बच्चों पर बड़े, हुक्म की तलवार ताने बैठे रहते हैं। बिना यह सोचे कि बच्चों की भी अपनी एक सोच होती है, सपने होते हैं, उनका भी अपने तरीके से कुछ करने का मन होता है, और हम यह मान लेते हैं कि वें तो बच्चे हैं, मासूम व नादान, उन्हें सही ग़लत का क्या पता मगर इसी सच का दूसरा पहलू यह है कि बच्चों के बारे में शायद उनसे बेहतर कोई नहीं जानता ।अगर हम उनकी सोच, सपनों, कल्पनाओं, समस्याओं व ज़रुरतों को समझ सकें, उन्हें इच्छित प्यार दें तो उनके लिए बाल दिवस सार्थक हो जाएगा।
बाल साहित्यकार सोचें कि बच्चों के लिए जो भी लिखें वह केवल उपदेशबाजी न होकर, बच्चों की सोच व उनके उपयोग व रुचि का हो, परियों, राक्षसों की कहानियों के बजाय विज्ञान सम्मत हो , भविष्य की सोच वाला हो तो ऐसा बाल साहित्य भी उनके लिए बेशकीमती उपहार होगा । आज दुनिया का सबसे युवा देश बाल दिवस मना रहा है पर , आज भी देश में बच्चे सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं । न स्कूल उन्हें वह दे रहे हैं जो उन्हे चाहिए न ही ‘माम डैड के पास उनके लिए समय है । इस बाल दिवस माता पिता व अभिभावकों को सजग बनाने की ज़रुरत है । सबसे पहले तो हमें उस जगह पर खास ध्यान देने की ज़रुरत है जहां बच्चों का सबसे ज़्यादा वक्त बीतता है और यें दो स्थान हैं घर व स्कूल।
घर पर बच्चे सबसे ज्यादा सुरक्षित होते हैं और सबसे ज़्यादा खुलकर जीते व खेलते, खाते हैं पर जैसे जैसे संयुक्त परिवारों रहे हैं, माता-पिता काम काज करने के लिए बाहर रहने लगे हैं घर भी अब बच्चों के लिए न ‘प्रिय स्थान रह गया है और न ही सुरक्षित । नौकरों के भरोसे पलने वाले बच्चे एक असुरक्षा भाव से त्रस्त रहते हैं। उनमें दूसरों पर विश्वास न करने की भारी प्रवृत्ति पाई गई है ऐसा शायद इसलिए हुआ कि उन्हे उनके मां – बाप ही सदैव सतर्क रहने की बात कहते रहते हैं । हम अपने बच्चो के लिए एक निष्छल, मासूम व निश्चिंत नहीं बचपन दे पाएं हैं ? इस बाल दिवस पर यदि यह दें तो बच्चों के लिए यह उपहार बेशकीमती तोहफा होगा।
आप उन्हे महंगे से महंगे स्कूल में तो भेज सकते हैं पर यह मान लेना कि भारी भीड़ – वाले इन स्कूलों से बच्चे सुसंस्कृत होकर निकलेंगे तो आप भ्रम में हैं । वहां भी उन्हे उच्च ग्रेड पाने की कला तो सिखाई जा रही है पर उनका ‘भावनात्मक संवेग बहुत निम्न होता जा रहा है । इसका मतलब यह हुआ कि स्कूलों ने कमाई की मशीनें तो बना ली पर मानवता के प्रति दायित्व , दया, प्रेम करुणा , ममता व सहायता करना जैसे मूलभूत गुण नहीं सिखाए। आज के बच्चे कल के नागरिक हैं। अगर हम यें मानवीय गुण नहीं दे पाएं तो इस बार का बाल दिवस सार्थक हो जाए।
भौतिकता की अंधी दौड़, अधिक से अधिक पा लेने की चाहत, समाज में उच्च स्थान पाने की होड़ व हर समस्या का हल पैसे में ढूंढने की प्रवृत्ति और लगातार घटती संवेदनशीलता तथा अति व्यस्तता की शिकार दिनचर्या भले ही भौतिक रूप से हमें समृद्ध बना रही हो, घरों में सुविधाएं व सुख के साधन बढ़ गए हों, पर, इन सब का सबसे बुरा असर यदि किसी पर पड़ा है तो वें हैं बच्चे । बच्चो से उनका बचपन लगभग छिन गया है । काश हम लौटा पाएं अपने बच्चो के बचपन में मस्त हो बेफिक्री से खेलने, उछलने-कूदने, शरारतें करने के दिन उन्हे समय से पहले बड़े या बूढ़े होने से रोकने की एक सार्थक मुहिम भी आज के बच्चो के लिए एक यादगार गिफ्ट होगा।
आज के वातावरण के चलते शारीरिक विकास के स्तर पर लड़के 14 की उम्र में ही ऐसे लक्षण प्रदर्शित कर रहे हैं जो एक युवा में होते हैं । वैसे इसके पीछे खान-पान की बदली प्रवृत्ति व उपलब्धता को ज्यादा उत्तरदायी माना जा रहा है। प्राय: वह अपनी उम्र के बच्चों के साथ बाहर खेलने – कूदने की बजाय कम्प्यूटर गेम्स खेलना ज्यादा पसंद करते हैं । तो गेम्स को ही बालमन व नैतिक मूल्यों के अनुरूप ढालना भी एक शानदार उपहार होगा बच्चों के लिए।
समय से पहले शारीरिक रूप से जवान दिखने वाले बच्चो के प्रति मां – बाप को ज्यादा जागरुक रहना होता है , क्योंकि ऐसे बच्चे दिखते भले ही बड़े हों पर मानसिक रूप से वें अपरिपक्व ही होते हैं और गलत तत्व इसी बात का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। विशेष रूप से लड़कियों के मामले तो अब बहुतायत में देखने सुनने में आ रहे हैं अत: समय की मांग है कि हम भी उन्हे ‘अभी बच्ची ही तो है कह कर नजरअंदाज न करें अपितु उनकी जरुरतों का पूरा ख्याल रखें।
अच्छे मां बाप के लिये जरुरी है कि वह बच्चो से मित्रवत् व्यवहार करें। उनकी उत्सुकताओं को शांत करें , बात – बात पर उन्हे डांट-द्बक्तटकार कर चुप करने से आप का काम तो सरल हो सकता है पर बच्चा अपने भोलेपन व अज्ञानता के चलते गलत संगति या गलत हाथों में भी पड सकता है । तब आपके सामने सिवाय पछताने के कुछ भी नहीं बचेगा इसलिये बेहतर यही होगा हम अपने बच्चे को उचित समय पर ही सम्हाल लें । उसे बेझिझक वह सब बताएं जो उसकी जरुरत है । यदि हम नहीं बताएगें तो वह सस्ती किताबों या नेट अथवा अपने दोस्तों या ऐसे लोगों से जानेगा जो हो सकता है उसके व आपके हितैषी न हों।
अच्छा होगा कि हम सरकार या व्यवस्था की ओर ताकने की बजाय अपने आप ही अपने बच्चों का ख्याल रखें, उन्हें सही दिशा दें, उनकी प्रशंसा करें, उन्हे समझाने का प्रयास करें व अवसर दें ताकि वें आती हुई किशोरावस्था का आनंद ले सकें । तो आइए, इस बार इस अंदाज़ में बच्चों को बाल दिवस का उपहार दें।
-डॉ घनश्याम बादल
-डॉ घनश्याम बादल