दर्द निवारक दवा अर्थात पेन किलर टेबलेट्स से भले ही तात्कालिक लाभ मिलें और दर्द भी दूर हो जाए किंतु ये नुकसान भी पहुँचाती हैं। यह शरीर के कई अंगों को क्षतिग्रस्त कर उनकी कार्यक्षमता कमजोर कर देती हैं। दर्द निवारक सभी दवाओं में लाभ की अपेक्षा में हानि अधिक होती हैं।
आजकल इनका अधिकाधिक उपयोग बढ़ गया है पर कोई भी यह नहीं जानता कि इससे भीतरी नुकसान कितना ज्यादा होता है। ये लिवर, आमाशय एवं किडनी को क्षतिग्रस्त कर प्रभावित करने लगती हैं। अब इनके सेवनकर्ताओं में बहरेपन होने की शिकायतें सामने आ रही हैं। कई पेन किलर टेबलेट्स जो विश्व भर में प्रतिबंधित हैं किंतु भारत में वे धड़ल्ले के साथ से बिक रही हैं। यहां उनका कारोबार सर्वाधिक होता है।
मधुमेह बढ़ता है चमकदार चावलों से
मधुमेह की स्थिति में चावल खाएं या नहीं अथवा कौन सा चावल कैसे पकाकर खाएं, इसको लेकर दुविधापूर्ण स्थिति रहती है। कई लोग चावल खाना पूरा छोड़ देते हैं जबकि चावल हमारे खानपान में ऊर्जा एवं शरीर को गर्मी देने वाला महत्त्वपूर्ण अनाज है। यह सच है कि शीघ्र पचने के कारण चावल शरीर में जल्द शुगर स्तर बढ़ा देता है पर ऐसा पालिश किए गए चमकदार चावल को कुकर में बनाने या पुलाव के रुप में खाने से होता है जबकि ढेकी से कूटे या उसना चावल से यह नहीं होता।
मधुमेह की स्थिति में चावल खाएं या नहीं अथवा कौन सा चावल कैसे पकाकर खाएं, इसको लेकर दुविधापूर्ण स्थिति रहती है। कई लोग चावल खाना पूरा छोड़ देते हैं जबकि चावल हमारे खानपान में ऊर्जा एवं शरीर को गर्मी देने वाला महत्त्वपूर्ण अनाज है। यह सच है कि शीघ्र पचने के कारण चावल शरीर में जल्द शुगर स्तर बढ़ा देता है पर ऐसा पालिश किए गए चमकदार चावल को कुकर में बनाने या पुलाव के रुप में खाने से होता है जबकि ढेकी से कूटे या उसना चावल से यह नहीं होता।
उसना अथवा हाथ कूटे चावल को उबाल कर पसा कर बनाने पर उसमें कार्बोज, कार्बोहाइड्रेट अर्थात ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। इस प्रकार बने उसना या हाथ कूटे चावल को कोई भी रोगी सीमित मात्रा में खा सकता है। उसना चावल अनेक प्रांतों में बहुतायत से बिकता व खाया जाता है। यह भारत का प्रमुख अनाज है।
अल्जीमर्स रोकने में आहार मददगार
अपने देश में अल्जीमर्स रोगियों की संख्या में धीरे-धीरे इजाफा हो रहा है। इसे बुढ़ापे की बीमारी कहकर टाल दिया जाता है। स्मृति हृास का यह खतरा प्रौढ़ों एवं मोटे लोगों में अधिक देखा जाता है। मस्तिष्क के सिकुडऩे से ऐसा होता है किंतु अल्जीमर्स होने के खतरे को आहार के माध्यम से कम किया जा सकता है। पुरुषों को यह बीमारी अधिक होती है। इसे अधेड़ावस्था के बाद खानपान को पौष्टिक रखकर रोका जा सकता है। आहार में जैतून तेल, फलियां, दालें, सब्जियां, मछली, मुर्गा को उपयुक्त मात्रा में स्थान व महत्त्व देकर अल्जीमर्स के सामान्य खतरों को टाला जा सकता है। इसे उपचारहीन रोग माना जाता है किंतु देखभाल एवं पौष्टिक खानपान से अल्जीमर्स पर काबू पाने एवं होने से रोकने में सहायता मिलती है।
अपने देश में अल्जीमर्स रोगियों की संख्या में धीरे-धीरे इजाफा हो रहा है। इसे बुढ़ापे की बीमारी कहकर टाल दिया जाता है। स्मृति हृास का यह खतरा प्रौढ़ों एवं मोटे लोगों में अधिक देखा जाता है। मस्तिष्क के सिकुडऩे से ऐसा होता है किंतु अल्जीमर्स होने के खतरे को आहार के माध्यम से कम किया जा सकता है। पुरुषों को यह बीमारी अधिक होती है। इसे अधेड़ावस्था के बाद खानपान को पौष्टिक रखकर रोका जा सकता है। आहार में जैतून तेल, फलियां, दालें, सब्जियां, मछली, मुर्गा को उपयुक्त मात्रा में स्थान व महत्त्व देकर अल्जीमर्स के सामान्य खतरों को टाला जा सकता है। इसे उपचारहीन रोग माना जाता है किंतु देखभाल एवं पौष्टिक खानपान से अल्जीमर्स पर काबू पाने एवं होने से रोकने में सहायता मिलती है।
अवसाद का मृत्यु से समीपी संबंध
अवसाद जिसे डाक्टर्स डिप्रेशन कहते हैं, अच्छे भले जीवन को तबाह कर देता है। कर्मठ व्यक्ति को निर्बल, अक्षम, डरपोक, कामचोर बना देता है। यदि यह अस्पताल में भर्ती मरीज को वहां के वातावरण, उपचार एवं डाक्टर की लापरवाही के कारण घेर ले तो वह रोगी व्यक्ति आगे चलकर जल्द ही मृत्यु को प्राप्त करता है।
अवसाद जिसे डाक्टर्स डिप्रेशन कहते हैं, अच्छे भले जीवन को तबाह कर देता है। कर्मठ व्यक्ति को निर्बल, अक्षम, डरपोक, कामचोर बना देता है। यदि यह अस्पताल में भर्ती मरीज को वहां के वातावरण, उपचार एवं डाक्टर की लापरवाही के कारण घेर ले तो वह रोगी व्यक्ति आगे चलकर जल्द ही मृत्यु को प्राप्त करता है।
यह पाचन तंत्र एवं तंत्रिका (नर्वस) तंत्र को प्रभावित करता है। पाचन की अपेक्षा नर्वस सिस्टम ज्यादा प्रभावित होता है। हृदय पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। यह हृदय धमनी के रोगी की जटिलता को गहरा देता है जो उसे मृत्यु की ओर ले जाता है। मरीज को अवसाद से बचाना डाक्टर की पहली जिम्मेदारी बनती है। मरीज को अवसाद से उबारने में अस्पताल का स्टाफ एवं परिजन की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है। मरीज के आत्मबल को जगाने से वह कठिन बीमारी से उबर जाता है।
मिरगी की प्रारंभिक पहचान से अच्छा इलाज संभव मिरगी की यदि प्रारंभिक अवस्था में ही चिकित्सकीय पहचान हो जाए तो इलाज अच्छे तरीके से किया जा सकता है। मिरगी के शुरुआती झटकों की अवस्था में उसका ई. ई. जी., व एम. आर. आई. कराकर रिपोर्ट की जांच पड़ताल कर रोगी के मिरगी पीडि़त होने की पुष्टि होने पर यदि उसका उपचार आरंभ कर दिया जाए तो उस पर काबू पाया जा सकता है।
अपने देश में मिरगी को लेकर भ्रांत धारणाएं अधिक हैं। उसी के चलते वह आग या पानी की भेंट चढ़ जाता है। मिरगी का आधुनिक उपचार संभव है अतएव ऐसे रोगी एवं परिजन नुस्खों, नीम हकीमों एवं नौसिखिये के फेर में न पड़ें। उपयुक्त जांच व उपचार से इस पर काबू पाया जाना संभव है। इस मामले में देरी नुक्सानदेह हो सकती है। मिरगी का उपचार व नियंत्रण अब पूर्ण संभव है।
सावधानी बरत अस्थमा पर करें काबू
दमा, अस्थमा किसी भी आयु में किसी को भी हो सकता है। सावधानी बरत कर इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। अस्थमा के कारण हैं पशुओं के खाल व बाल, धुआं, धूल, बिस्तर, तकिया व झाडू. में चिपके कण, तीव्र गंध, स्प्रे फूलों के परागकण, कठोर मेहनत आदि। इनसे बचकर दमा के दौरों को टाला जा सकता है।
सांस नली पर इस तरह के कण चिपकने पर सांस लेने व छोडऩे की गति प्रभावित होती है जिसे निकालने के लिए छीकें आती हैं, अतएव ऐसी चीजों से बचने पर सांस की स्वाभाविक क्रिया सुचारु चलती रहेगी और दमा का दौरा नहीं पड़ेगा।
दमा, अस्थमा किसी भी आयु में किसी को भी हो सकता है। सावधानी बरत कर इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। अस्थमा के कारण हैं पशुओं के खाल व बाल, धुआं, धूल, बिस्तर, तकिया व झाडू. में चिपके कण, तीव्र गंध, स्प्रे फूलों के परागकण, कठोर मेहनत आदि। इनसे बचकर दमा के दौरों को टाला जा सकता है।
सांस नली पर इस तरह के कण चिपकने पर सांस लेने व छोडऩे की गति प्रभावित होती है जिसे निकालने के लिए छीकें आती हैं, अतएव ऐसी चीजों से बचने पर सांस की स्वाभाविक क्रिया सुचारु चलती रहेगी और दमा का दौरा नहीं पड़ेगा।