Saturday, April 27, 2024

बाल कथा: झगड़ालू झींगुर

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नाना और नानी के घर में एक झींगुर रहता था। वह अकड़बाज था और अधिकतर चुप रहता था।
एक दिन नाना ने नानी से कहा, ‘हमारी बैठक की अंगीठी के अंदर जो झींगुर रहता है, वह कभी झिनझिनाता ही नहीं। झींगुरों को तो झिनझिन करना चाहिए। यह तो चुप ही रहता है। ऐसे झींगुर का क्या फायदा।’
नानी ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘हां, अगर झींगुर झिनझिनाता रहे तो मन लगा रहता है लेकिन हमारा झींगुर तो चुप रहता है। इस का कोई लाभ नहीं।’

ये बातें झींगुर भी सुन रहा था। वह इस समय अंगीठी की ईंटों के पास घूम रहा था। नाना नानी की बातें सुन कर उस ने गुस्से से उन की ओर देखा और दो ईंटों के बीच में घुस गया।
‘अगर यह बोलेगा नहीं तो मैं भी इस के लिए अंगीठी में आग नहीं जलाऊंगा,’ नाना ने कहा।

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नानी बोली, ‘हां, मैं भी इस के खाने के लिए जमीन पर चावल और रोटी के टुकड़े नहीं गिराऊंगी।’
झींगुर ने उस की बातें सुनी तो वह गुस्से से बड़बड़ाया, ‘अंगीठी में आग नहीं जलाओगे तो मैं धूप सेंक लूंगा। नानी रोटी के टुकड़े नहीं गिराएगी तो मैं दुबला नहीं हो जाऊंगा। बाहर खाने को बहुत है। मैं इस घर में अब रहूंगा ही नहीं।’ यह कहता हुआ वह ईटों के बीच में से निकला और अकड़ कर चलता हुआ दरवाजे के नीचे की दराज से निकल कर नाना नानी के मकान के बाहर चला गया।

बाहर आ कर वह धूप में बैठ गया और अकड़ कर बोला, ‘आग कौन सेंकना चाहता है।
‘मैं तो नहीं सेंकना चाहता’, एक मोटी सी आवाज उसे सुनाई दी।
झींगुर ने देखा, एक मकड़ा अपनी पीठ से चमकदार धागे निकाल कर इधर उधर तान रहा था।
‘तुम यह क्या कर रहे हो?’ झींगुर ने हैरान हो कर उससे पूछा’

‘अरे, तुम नहीं जानते, मैं अपना जाल बुन रहा हूं। इस में रहूंगा। जैसे सभी झींगुर झिनझिनाते हैं, उसी तरह सभी मकड़े जाले के घर बनाते हैं।’
‘मैं तो नहीं झिनझिनाता, झिनझिनाने के लिए अपने पंख आपस में रगडऩे पड़ते हैं। उस से मुझे गुदगुदी होने लगती है,’ झींगुर ने कहा और फिर पूछा, ‘अच्छा, जाला बुनने में तुम्हें गुदगुदी तो नहीं होती?’
‘नहीं, बिल्कुल नहीं,’ मकड़े ने उत्तर दिया।

‘अच्छा, तो मैं भी जाला बुनता हूं,’ यह कह कर झींगुर भी मकड़े की तरह एक डाल से दूसरी डाल की ओर कूदा। फिर उधर से वापस पहली डाल पर आने के लिए कूदा तो धड़ाम से नीचे आ गिरा। उस के काले काले चमकदार पंख धूल से भर गए।
वह बहुत नाराज हुआ और बड़बड़ाया, ‘अरे, जाला कौन बुनना चाहता है?’

‘मैं तो नहीं बुनना चाहती,’ एक महीन सी आवाज उस के पास से उभरी। झींगुर ने देखा, एक नन्हीं सी चींटी अपने से कई गुना बड़े बीज को घसीट कर लिए जा रही है।
‘तुम क्या कर रही हो?’ झींगुर ने चींटी से पूछा।
‘मैं रात के लिए खाना ले जा रही हूं,’ चींटी ने कहा।

झीगुर ने भी एक बीज ले लिया और उसे घसीट कर चींटी के पीछे चलने लगा और कई चींटियां भी आ लगीं लेकिन झींगुर ने कभी काम नहीं किया था। वह जल्दी ही हांफने लगा। लडख़डा कर इधर-उधर गिरने लगा।
यह देखकर चींटियों ने कहा, ‘अरे तुम कितने भोंदू हो। भागो यहां से। तुम्हें काम करना नहीं आता।’
‘ठीक है, ठीक है’, झींगुर ने अकड़ कर कहा और बीज छोड़ कर आगे आ गया।
‘जमीन पर पड़े हुए बीजों की किस को जरूरत है?’ वह बुड़बड़ाया।

‘मुझे तो नहीं है,’ एक झिनझिनाती हुई आवाज आई।
झींगुर ने देखा, एक मधुमक्खी एक फूल पर बैठी है। वह बोला, ‘तुम वहां क्या कर रही हो?’
‘मैं शहद इक_ा कर रही हूं, ‘मधुमक्खी ने जवाब दिया।
‘शहद इक_ा करने में तुम्हें गुदगुदी तो नहीं होती?
‘कैसे मूर्ख हो। भला इस में गुदगुदी होने का क्या मतलब?’
झींगुर ने सोचा, ‘इस का काम अच्छा है। यही करना चाहिए।

उस ने एक छलांग लगाई और एक गुलाब के फूल पर जा बैठा लेकिन जब वह फूल के बीजों से शहद चूसने की कोशिश करने लगा तो फिसल कर पत्तियों के बीच फंस गया।
तभी जोर की हवा चलने लगी। गुलाब के फूल की पत्तियां झलने लगी। झींगुर डाल से चिपका हुआ था। तभी एकाएक जोर की बारिश आ गई और झींगुर पूरा भीग गया।
उसे सर्दी लग रही थी और उस का कोई घर भी नहीं था। उस के पास खाने को कुछ नहीं था और वह कुछ भी काम नहीं कर सकता था। वह बारिश में भीग रहा था। अचानक उसे नाना नानी के घर की याद आई। उसे याद आया कि उसने कैसे अकड़ कर कहा था, ‘नानी के टुकड़े कौन चाहता है। नाना की आग कौन सेंकना चाहता है?’
अब उसे पता लग गया था कि वह क्या चाहता है। वह भीगी टहनी से फिसलता हुआ नीचे धरती पर आ गिरा रात का अंधेरा छा रहा था। नाना नानी का मकान दूर था लेकिन वह जानता था कि नाना नानी बहुत अच्छे हैं। वह उसके घर की ओर चलता गया।

आखिर भूखा और सर्दी से ठिठुरा हुआ वह दरवाजे के पास आ पहुंचा। दरवाजे के नीचे से खिसकता हुआ वह अंदर जा पहुंचा।
सामने बैठक की अंगीठी में बड़ी तेजी से आग जल रही थी। फर्श पर टुकड़े बिखरे हुए थे। उस ने अंगीठी के पास जाकर अपने को सुखाया। फिर टुकड़े चुनचुन कर खाए और पेट भर लिया। फिर अचानक उसने अपने पंख रगडऩे शुरू किए तो एक सुहानी झिनझिनाहट कमरे में गूंज उठी।
‘अरे,’ नाना ने खुश हो कर कहा, ‘हमारा झींगुर आज झिनझिना रहा है।’

‘अरे, हां सचमुच कितनी ऊंची आवाज में झिन झिना रहा है,’ नानी ने भी खुशी से कहा।
झींगुर ने उस की बातें सुनी तो उसे गर्व महसूस हुआ जैसा कि पहले कभी नहीं हुआ था। वह झिनझिना रहा था तो उसे गुदगुदी हो रही थी लेकिन अब वह उसे सहने की कोशिश कर रहा था। वह जान गया था कि सभी झींगुर झिनझिनाते हैं। यह उस का काम है। उसे झिनझिनाना चाहिए।
– नरेंद्र देवांगन

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