नयी दिल्ली- जी-20 शिखर सम्मेलन के इतर भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी और इटली के नेताओं ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के जवाब में भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) स्थापित करने के बारे में आज एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन की संयुक्त अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में सऊदी अरब के युवराज एवं प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान, राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायदा, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रो, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज़, इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी, और यूरोपीय संघ प्रेसिडेंट वॉन डेर लेयेन भी मौजूद थे।
श्री मोदी ने कहा कि आने वाले समय में यह भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक समावेशन का प्रभावी माध्यम बनेगा। यह पूरे विश्व मे कनेक्टिविटी और विकास को सतत दिशा प्रदान करेगा।
इन देशों के प्रतिनिधियों ने शनिवार को जिस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, उसमें कहा गया है कि सऊदी अरब साम्राज्य, यूरोपीय संघ, भारत, यूएई, फ्रांस, जर्मनी, इटली और अमेरिका की सरकारें भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) स्थापित करने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आईएमईसी से एशिया, अरब की खाड़ी और यूरोप के बीच बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों के अनुसार आईएमईसी में दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे। पूर्वी गलियारा भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ता है और उत्तरी गलियारा अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है। इसमें एक रेलवे शामिल होगा, जो पूरा होने पर, मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन मार्गों के पूरक के लिए एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी सीमा-पार जहाज-से-रेल नेटवर्क तैयार करेगा – जो वस्तुओं और सेवाओं के भारत से संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन, इज़राइल और यूरोप और इन देशों के बीच पारगमन की सुविधा प्रदान करेगा।
अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार रेल मार्ग के साथ-साथ, प्रतिभागियों का इरादा बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए केबल बिछाने के साथ-साथ स्वच्छ हाइड्रोजन निर्यात के लिए पाइपलाइन बिछाने का है। यह गलियारा क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करेगा, व्यापार पहुंच बढ़ाएगा, व्यापार सुविधा में सुधार करेगा और पर्यावरणीय, सामाजिक और सरकारी प्रभावों पर बढ़ते जोर का समर्थन करेगा।
पक्षकारों का इरादा है कि गलियारा दक्षता बढ़ाएगा, लागत कम करेगा, आर्थिक एकता बढ़ाएगा, नौकरियां पैदा करेगा और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करेगा – जिसके परिणामस्वरूप एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व का परिवर्तनकारी एकीकरण होगा।
इस पहल के समर्थन में, प्रतिभागी इन नए पारगमन 2 मार्गों के सभी तत्वों को व्यवस्थित और कार्यान्वित करने तथा तकनीकी, डिजाइन, वित्तपोषण, कानूनी और प्रासंगिक नियामक मानकों की पूरी श्रृंखला को तैयार करने के वास्ते समन्वय संस्थाओं की स्थापना करने के लिए सामूहिक रूप से और तेजी से काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
एक बयान में कहा गया कि आज का समझौता ज्ञापन प्रारंभिक परामर्श का परिणाम है। यह प्रतिभागियों की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करता है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अधिकार या दायित्व नहीं बनाता है। प्रतिभागी प्रासंगिक समय सारिणी के साथ एक कार्य योजना विकसित करने और उस पर प्रतिबद्ध होने के लिए अगले साठ दिनों के भीतर मिलने का इरादा रखते हैं।
इस अवसर पर श्री मोदी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत कनेक्टिविटी को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं मापता। सभी क्षेत्रों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाना भारत की मुख्य प्राथमिकता रहा है। हमारा मानना है कि कनेक्टिविटी विभिन्न देशों के बीच आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाने का स्रोत है।
श्री मोदी ने कहा कि आने वाले समय में यह भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक समावेशन का प्रभावी माध्यम बनेगा। यह पूरे विश्व मे कनेक्टिविटी और विकास को सतत दिशा प्रदान करेगा।
उन्होंने कहा कि इससे हम एक विकसित भारत की मज़बूत नींव रख रहे हैं। हमने ग्लोबल साउथ के अनेक देशों में एक विश्वसनीय साझीदार के रूप में, ऊर्जा , रेलवे, जल, तकनीकीपार्क, जैसे क्षेत्रों में अधोसंरचना परियोजनाओं का क्रियान्वयन किये हैं। उन्होंने कहा कि इन प्रयासों में हमने माँग आधारित और परिवहन पर विशेष रूप से बल दिया है।
श्री मोदी ने कहा कि मज़बूत कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर मानव सभ्यता के विकास का मूल आधार हैं। भारत ने अपनी विकास यात्रा में इन विषयों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। भौतिक ढांचा के साथ साथ सोशल, डिजिटल, तथा वित्तीय क्षेत्र में अभूतपूर्व पैमाने पर निवेश हो रहा है।
श्री मोदी ने कहा कि आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाने का स्रोत है। कनेक्टिविटी पहलों को प्रोत्साहित करते हुए कुछ मूलभूत सिद्धांतों का सुनिश्चित किया जाना महत्वपूर्ण है, जैसे: अंतर्राष्ट्रीय नियम, नियम तथा कानून का पालन। सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान। ऋण बोझ की जगह वित्तीय व्यवहार्यता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।