Sunday, September 29, 2024

उधार में व्यवहार न पालें

उधार को व्यवहार की कैंची कहा गया है। यह वाक्य आपने कई जगह लिखा देखा होगा, यह सही कहावत है।
रमन ने अपनी बहन-राधा को 20,000 रुपए उधार दिए। बहन गरीब थी, सोचा- पैसे से मदद कर दी जाए। जब उसके पास पैसे आएंगे, लौटा देगी मगर उसके पास पैसे नहीं आ पाए।
राधा ने अपने भाई से बात करना छोड़ दिया, उसे डर था कि यदि उसने अपने भाई से बात की तो वह उससे पैसे न मांग लें। वह राखी पर भी भैया के पास नहीं आई। वह शरमा रही थी, घर कैसे जाए? कहीं भाई ने पैसे मांग लिए तो वह क्या जवाब देगी? पैसे का इंतजाम नहीं हुआ है।
हारकर रमन ने ही राधा से बात की। राधा ने बताया कि पैसे का इंतजाम नहीं हुआ था इसलिए वह शर्म के मारे उससे बात नहीं कर रही थी। तब रमन को कहना पड़ा कि बहन मेरे पास पैसे थे, इसलिए दिए। यदि नहीं होते तो क्यों देता? यह सुनकर राधा की जान में जान आई, तब से उसने अपने भाई से पुन: व्यवहार बना लिया मगर रमन के पैसे आज तक वापस नहीं आए।
पैसा और व्यवहार दोनों एक साथ नहीं चलते हैं, व्यक्ति चाहे कि वह मिलने वाले को रुपए भी उधार दे और व्यवहार भी बना रहे, यह संभव नहीं है। यह मानव प्रवृत्ति है कि वह लालची स्वभाव का होता है। चाहकर भी अपने सिद्धांत पर टिक नहीं पाता।
सुरेश ने अपने दोस्त महेश को रुपए उधार दिए। वह मुसीबत में था, उसकी बेटी की शादी थी। दोस्त को दोस्त के काम आना चाहिए। यह सोचकर सुरेश ने 50,000 रुपए उधार दे दिए मगर वादे के मुताबिक महेश सुरेश को रुपए लौटा न सका।
जब भी सुरेश तकाजा करता, महेश कहता, इस बार मैं तुझे रुपए देता मगर केशव ने पैसे मांग लिए थे, इसलिए उसे दे दिए।
जब सुरेश ने केशव से जांच की तो पता चला कि केशव ने उसे 25000 रुपए तीन रुपए सैकड़े के ब्याज से उधार दिए थे, इसलिए महेश ने केशव के पैसेे पहले लौटा दिए। इधर सुरेश ने बिना ब्याज के रुपए दिए थे, इसलिए महेश को सुरेश के रुपए जल्दी देने की जरूरत नहीं थी।
जब सुरेश ज्यादा तकाजा करने लगा, तब महेश ने सुरेश से मिलना कम दिया। वह कहने लगा कि आजकल पैसे के जुगाड़ की लिए इधर-उधर घूमता रहता है, इसलिए उसे फुरसत नहीं मिलती है। इधर सुरेश उस घड़ी को कोस रहा था, जब उसने अपने दोस्त की मदद के लिए रुपए दिए थे।
जगदीश का उदाहरण लें। उसके बारे में कहा जाता था कि वह पैसे का दुश्मन है। जहां से, जिस तरह भी, पैसे उधार मिल जाते हैं, लेकर खर्च कर देता है। बीड़ी, सिगरेट पीना, शराबखोरी और इश्क-मुश्क करना, उसकी आदत है। इसी में वह पैसे उड़ा देता है। वैसे उसके पास सरकारी नौकरी है मगर अपनी आदत की वजह से, वह इधर-उधर से पैसे मांगते देखा जा सकता है।
उसकी इस आदत से वाफिक ओम ने उसे एक बार 1000 रुपए उधार दे दिए, फिर दूसरी बार 2000 रुपए। इस तरह टुकड़े-टुकड़े में उसने 23000 रुपए उधार ले लिए। जब ओम ने तीन माह बाद तकाजा किया तो जगदीश ने ब्याज के रुपए हाथ में रख दिए।
भाई ओम! तेरे रुपए तो दूध पी रहे हैं, यह उसका घी हाथ में रख।
इस तरह जगदीश ने उसे कई माह ब्याज दिया। उसके बाद ब्याज देना भी बंद कर दिया मगर जब ओम ने तकाजा किया तो कहने लगा, भाई ओम, तेरे रुपए तो दूध पी रहे हैं, जब चाहे ले लेना मगर इस वक्त पैसे नहीं हैं।
हर बार जब भी ओम तकाजा करता उसे यही जवाब मिलता। भाई, तेरे रुपए सुरक्षित हैं, जब चाहे ले लेना, अभी नहीं हैं।
उसके इस जवाब में सच्चाई थी। उसे इतनी तनख्वाह नहीं मिलती थी, जितना उसका खर्चा था और उसे काटकर वह एक साथ सबको रुपए दे सके मगर ओम था कि जब तब रुपए मांगता और जगदीश उसे वही रटारटाया जवाब देता।
आज कई साल हो गए, उसे रुपए वापस नहीं मिले हैं। ओम मांग-मांगकर थक चुका है। उसे मालूम हुआ कि उसके जैसे और कई व्यक्ति हैं, जिनसे जगदीश पैसे ले चुका है, जो उसे धौंस-धमकी देता है, उसे दूसरे से पैसे लेकर दे देता है, जो सीधा-सादा रह जाता है, उसे यूं ही टालता रहता है।
अपनी चादर से ज्यादा पैर पसारने वाले व्यक्ति दुनिया में बहुत हैं। वे आवश्यकता से अधिक खर्च करते रहते हैं, इस कारण उन्हें उधार लेने की आवश्यकता महसूस होती है। मगर अपनी इस प्रवृत्ति के कारण कर्ज पर कर्ज बढ़ाते चले जाते हैं और उसे चुका नहीं पाते हैं। ऐसे व्यक्ति जो फिजूलखर्ची के आदी होते हैं, वे पैसे देने में लापरवाही बरतते हैं। इस बात का सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए।
कमलाशंकर को लें। यह विजयशंकर के साथ पढ़ाते थे। इनके पास बहुत रुपए थे। इन रुपयों को वे ब्याज पर चलाते थे मगर यह रुपए उधार देने के पहले गहने रकम गिरवी रख लिया करते थे, यह बात विजयशंकर जानता था।
कई बार कमलाशंकर ने रुपए उधार लेकर विजयशंकर को ब्याज दिया था, इसलिए विजयशंकर को ब्याज के रुपए का लालच लग गया था मगर, यह लालच उसे महंगा पड़ गया।
हुआ यूं कि कमलाशंकर ने अपने सिंगोली वाले दोस्त को विजयशंकर से रुपए उधार दिलवा दिए। करार का समय निकलने के बाद भी कमलाशंकर के दोस्त ने पैसे नहीं दिए, तब विजयशंकर को कमलाशंकर से कहना पड़ा कि उसके रुपए वापस दिलवाएं। तब कमलाशंकर ने विजयशंकर को चिट्ठी लिखकर सिंगोली भेज दिया।
कहना न होगा कि विजयशंकर को वहां से बैरंग लौटना पड़ा, तब से कई बार तकाजा करने पर और कई टुकड़ों में विजयशंकर के रुपए वापस आए।
इस पर कमलाशंकर ने कहा, यह तो गनीमत समझो कि रुपए आ गए, ब्याज की कोई बात नहीं। यदि रुपए नहीं आते तो क्या करते?
क्या मतलब? विजयशंकर ने पूछा।
यही कि यदि वह पैसे न देता तो क्या कर लेते? कमलाशंकर ने बड़ी ठिढाई से कहा ऐसे कई लोग मेरे पैसे खा गए हैं?
तब जाकर विजयशंकर को यह गुर हाथ लगा कि कभी परगांव यानी दूसरे गांव वालों को रुपए उधार नहीं देना चाहिए। जाहिर-सी बात है, जब उस व्यक्ति को अपने गांव में रुपए उधार नहीं मिल रहे हैं, इसलिए वह दूसरे गांव में उधार मांगने आया है।
कबीर का उदाहरण देखें। उसका विनय से पुराना लेन-देन था। वह अपनी बात का पक्का और खरा था। जब रुपए देने का करार करता, उसके एक दिन पहले ही रुपए दे जाता, इसलिए कबीर उसे जब तब उधार रुपए दे देता है। अक्सर वह उससे लिखाई-पढ़ाई भी नहीं करता था।
एक बार विनय अपने दोस्त दिनेश के साथ आया।
सर! यह मेरा दोस्त है दिनेश। उसने आते ही कहा, इसको 10000 रुपए उधार चाहिए।
कबीर ने बिना किसी सोच-विचार के रुपए दिनेश को दे दिए। बाद में पता चला कि दिनेश का लेन-देन खराब था, उसे गांव में कोई रुपए नहीं देता था। यह बात जानकर कबीर ने विनय से कहा।
तब विनय ने जवाब दिया, मैं उसे तुम्हारे पास लाया था, मगर मैं नहीं जानता था कि तुम जल्दी से उसे रुपए दे दोगे, मैं समझा तुम उसे टाल दोगे।
सुनकर कबीर का मुंह खुला रह गया, तुम यह क्या कह रहे हो? कबीर चौंका, यदि तुम साथ न होते तो मैं उसे कभी पैसे नहीं देता।
यह सुनकर विनय ने जवाब दिया। खैर, कोई बात नहीं पैसे मैं दूंगा मगर आइंदा एक बात ध्यान रखना। मैं किसी को लेकर आऊं तो उसे तत्काल रुपए मत दे देना। एक-दो बार टाल कर पैसे देना। हो सकता है कि उसका लेन-देन खराब हो और मैं उसे टालने की गरज से तुम्हारे पास लाया हूं।
बाद में मिलकर मैं उसकी स्थिति स्पष्ट कर दूं, यह कहकर विनय चला गया, संयोग देखिए कि विनय की आकस्मिक मौत हो गई, कबीर को दिनेश से कई बार तकाजा करना पड़ा, मगर उसने हर बार यह कहकर टाल दिया कि वह उसके रुपए चुका देगा, उसे घाटा नहीं देगा।
यमक ने मनोज को रुपए उधार देकर चेक प्राप्त कर लिया था, वह जानता था कि मनोज की आदत अच्छी नहीं है। सरकारी नौकरी में होते हुए भी हमेशा कड़का रहता है, इसलिए उससे पैसे वसूल करना टेढ़ी खीर है।
जब चेक की आखिरी तारीख थी, उससे पांच दिन पहले, यमक ने मनोज को चेता दिया, पांच दिन बाद में चेक लगा दूंगा, मुझे पैसे की आवश्यकता है।
मनोज यह बात जानता था कि यमक पांच दिन बाद चेक लगा देगा, इसलिए वह आखिरी तारीख को मनोज के पास गया, भाई मनोज! यह तुम्हारे पैसे।
यमक पैसे देखकर खुश हुआ, उसे लगा कि लोग मनोज के बारे में अफवाह उड़ाते हैं, यह पैसे के मामले में खराब है मगर यहां तो मनोज साफ-सुथरा निकला, अभी यमक यही सोच रहा था कि मनोज बोला, मगर यार एक बात है?
क्या बात है? बेझिझक कहिए?
मुझे आज ही ट्रेक्टर की किश्त भरना है, यदि यह रुपए तुम मुझे वापस दे दो तो मुझे 8000 रुपए की बचत हो सकती है, उसने बड़ी मासूमियत से कहा, नहीं, नहीं, यूं मत समझना कि मैं तुम्हें पैसे नहीं देना चाह रहा हूं, यह पैसे तो मैं तुम्हें दे चुका हूं। उसने रुपए यमक की ओर खिसकाते हुए कहा, मगर ट्रेक्टर की आखिरी किश्त समय पर चुकाने पर मुझे 8000 रुपए माफ हो जाते?
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ – विनायक फीचर्स

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