हीनभावना किसी भी औरत को नैतिक पतन की ओर ढकेल सकती है। बहू को लेकर सास में हीनभावना देखने में नहीं आती। खूबसूरत बहू पर सास को मान होता है। जब साथ की महिलाएं कहती हैं, ‘अरे, वाह! बहू तो आप खूब छांट कर लाई हैं,’ तो यह सुनकर कौन सी सास खुश नहीं होगी। लेकिन अगर सास ढलती उम्र में भी गरिमामयी, कांतिवान व प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली लगती है, जिससे वह उच्च शिक्षित व प्रतिभावान होने पर बहू से इक्कीस ही बैठती हो, तो इसका मुआवजा भी सास को बहुत भारी चुकाना पड़ता है। बहू की जलन नफरत के रूप में प्रकट होती है। वह पति को लेकर और बाद में बच्चों को हथियार बनाकर सास पर वार पे वार करती है।
औरतें अक्सर पुरुषों की तुलना में तंगदिल होती हैं। अपने बच्चे हो जाने पर यह अवगुण और भी बढ़ जाता है। मध्यवर्ग में जहां आर्थिक तंगी होती है, गरीब सास-ससुर रिश्वत के लिए पैसा कहां से लायें, हालांकि प्यार ममता का खजाना उनके पास भरपूर हो सकता है।
लालच हमेशा गरीब ही नहीं करते। अमीर बेटे-बहू भी लालची हो सकते हैं। यह फितरत की बात है। अच्छे संस्कारों को भी बुरे वक्त की तेज आंधी उड़ा ले जाती है। महज बेटे का प्यार काम नहीं आता क्योंकि जब मां-बाप और अपने बीवी-बच्चों में से चुनने की बात आती है, तो जाहिर है कि उसे अपना परिवार ही भाता है। मां-बाप पुराने हो चुके होते हैं और हर रद्दी चीज की तरह उनका मोल भी कबाड़ जितना ही होता है।
ऐशोआराम की ललक ने सारे रिश्ते भुला दिए हैं। पति-पत्नी भी स्वार्थपूर्ति के साधन ज्यादा बनते जा रहे हैं। इसीलिए अब काफी बुजुर्ग सचेत होने लगे हैं, लेकिन कई बार सब जानते-बूझते भी ममता मोह में अंधे होकर वे मांगने पर अपना सारा रूपया, मकान आदि बेटों को अचानक जरूरत आने पर देकर खाली हो जाते हैं, इसी आशा से कि बहू-बेटे उनसे कभी आंखें नहीं फेरेंगे। लेकिन नतीजा जो होता है, आज जगजाहिर है।
उषा जैन ‘शीरीं’