लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सरकार के दौरान कथित 1400 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले में अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक टी राम का नाम सामने आया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में विधायक टी राम को तलब किया है। स्मारक घोटाला उस समय का है जब BSP सरकार ने लखनऊ और नोएडा में कई स्मारकों और पार्कों का निर्माण कराया था, जिनमें महंगे पत्थरों और मूर्तियों का इस्तेमाल हुआ था।
ED की जांच के दायरे में कई व्यक्तियों और ठेकेदारों के साथ-साथ राजनीतिक हस्तियां भी आ रही हैं, जो उस समय इन परियोजनाओं से जुड़े थे। अब BJP के विधायक टी राम पर शक गहराता जा रहा है कि उनकी भी इस घोटाले में भूमिका हो सकती है। ED इस मामले में आर्थिक अनियमितताओं और धन के दुरुपयोग की जांच कर रही है।
वाराणसी के अजगरा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक टी राम की भूमिका को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गंभीर सवाल उठाए हैं। 14 अरब रुपये के स्मारक घोटाले की जांच के तहत, ED ने लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता त्रिभुवन राम को भी तलब किया है।
सूत्रों के अनुसार, अभियंता त्रिभुवन राम और भाजपा विधायक टी राम दोनों को दीपावली से पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है। इसके साथ ही, ED ने खनन विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक एवं सलाहकार सुहैल अहमद फारुखी को भी तलब किया है।
इस बीच, भाजपा विधायक टी राम ने कहा है कि उनका इस मामले से कोई वास्ता नहीं है और उन्होंने पहले भी यह स्पष्ट किया है कि वह इससे जुड़ी किसी कमेटी का हिस्सा नहीं थे।
इस मामले में पूर्व बहुजन समाज पार्टी (BSP) सरकार के कई मंत्रियों, जैसे नसीमुद्दीन सिद्दिकी और बाबू सिंह कुशवाहा, पर भी एफआईआर दर्ज की गई थी। साल 2012 में, पूर्व मंत्रियों समेत 19 लोगों के खिलाफ एफआईआर हुई थी। लोकायुक्त की जांच में 1400 करोड़ रुपये के घोटाले की पुष्टि भी की गई थी, लेकिन समाजवादी पार्टी (SP) सरकार में जांच धीमी पड़ गई और अन्य जांच एजेंसियां भी निष्क्रिय रहीं।
2012 में शुरू हुई जांच में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के पूर्व मंत्रियों बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दिकी, सीपी सिंह, और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगे थे। जांच के दौरान यह भी पता चला कि तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास मोहिन्दर सिंह ने कई मामलों में बिना स्वीकृति के सहमति प्रदान की थी, जो प्रक्रियाओं के खिलाफ था।
इस प्रकार की अनियमितताओं ने इस मामले को और अधिक जटिल बना दिया और जांच के दायरे में कई उच्च स्तरीय अधिकारियों को भी शामिल किया। लोकायुक्त की जांच में 1400 करोड़ रुपये के घोटाले की पुष्टि हुई थी, जिससे इस मुद्दे की गंभीरता और भी बढ़ गई। हालांकि, राजनीतिक बदलाव के बाद जांच धीमी पड़ गई, जिससे कई आरोपी समय के साथ बचने में सफल रहे।