शामली – राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक (PCCF) और शामली जिले के प्रभागीय वनाधिकारी (DFO) से सख्त जवाब तलब किया है। यह आदेश अमित कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें शामली जिले के आरक्षित वनों में हो रहे व्यापक अवैध अतिक्रमण और वनों की कटाई का मुद्दा उठाया गया था।
वन विभाग ने राजस्व विभाग पर डाला दोष
NGT में दायर अपने हलफनामे में वन विभाग ने आरोप लगाया कि राजस्व विभाग की निष्क्रियता के चलते आरक्षित वनों में अवैध कब्जे हटाने की प्रक्रिया बाधित हुई है। विभाग के अनुसार, जिले के सात गांवों – बीबीपुर जलालाबाद, पावटी
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खुर्द, डभेड़ी, बीबीपुर हाटिया, बरनावी, अकबरपुर सुन्हेटी और रातौंद – में 526 खसरा नंबर के अंतर्गत 497 हेक्टेयर भूमि आरक्षित वन क्षेत्र में आती है। अब तक केवल 154 खसरा नंबरों का सर्वेक्षण पूरा हुआ है, जबकि 310 हेक्टेयर क्षेत्र का सर्वे कार्य अधूरा पड़ा है। वन विभाग ने अपने जवाब में स्पष्ट किया कि सीमांकन एवं अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया राजस्व विभाग के सहयोग के बिना संभव नहीं है। राजस्व अधिकारियों की अनुपस्थिति और गैर-सहयोगात्मक रवैये के कारण सर्वेक्षण अधूरा रह गया है।
NGT की सख्त टिप्पणी, वन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के निर्देश
सुनवाई के दौरान NGT ने यह स्पष्ट किया कि पूरा क्षेत्र आरक्षित वन भूमि में आता है और वन अधिकारियों की यह जिम्मेदारी थी कि वे अतिक्रमण न होने दें। न्यायाधिकरण ने टिप्पणी की कि वन विभाग के हलफनामे में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पहले से हुए अतिक्रमण के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है और अब तक कितने अतिक्रमण हटाए गए हैं।
NGT ने राज्य के मुख्य वन संरक्षक (PCCF) और प्रभागीय वनाधिकारी (DFO), शामली को निर्देश दिया कि वे छह
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सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करें कि अतिक्रमण कैसे हुआ, किन अधिकारियों की लापरवाही से यह स्थिति बनी और अतिक्रमण हटाने की क्या योजना है।
अतिक्रमण हटाने के लिए 12 सप्ताह का लक्ष्य
वन विभाग ने NGT को बताया कि वे 12 सप्ताह के भीतर पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण पूरा कर अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया पूरी करेंगे। हालांकि, NGT ने यह निर्देश दिया कि छह सप्ताह के भीतर अदालत के समक्ष एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की
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जाए, जिसमें किए गए कार्यों का ब्योरा हो।
NGT ने वन अधिकारियों को 29 मई 2025 तक जवाब दाखिल करने का मौका दिया है। यदि तय समयसीमा में संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो न्यायाधिकरण कड़ी कार्रवाई कर सकता है।