नयी दिल्ली- सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता बिलकिस बानो ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष मंगलवार को कहा कि उनके मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देते समय शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार जिन कारकों पर विचार किया जाना है, उन्हें गुजरात सरकार ने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ के समक्ष बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता ने ये दलीलें पेश कीं।
उन्होंने कहा, “इस न्यायालय के निर्णयों के अनुसार जिन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए, उन्हें (दोषियों की सजा में) छूट देते समय अपराध परीक्षण, प्रभाव परीक्षण, सामाजिक चिंता, घृणा आदि को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है।”
उन्होंने यह भी दलील दी कि न्यूनतम सजा 14 साल है, लेकिन पूर्व नियोजित और असाधारण हिंसा या क्रूरता के साथ की गई हत्या के दोषियों के लिए यह सजा 26 साल है। असाधारण हिंसा या क्रूरता वाले अपराधों या पीड़िता की जलने से मृत्यु, या बलात्कार के बाद हत्या करने के दोषी लोगों के लिए यह सजा 28 वर्ष है।
शीर्ष अदालत के समक्ष अधिवक्ता ने कहा, “यह सार्वजनिक आक्रोश था। सार्वजनिक रूप से उत्साहित व्यक्तियों ने माफी को चुनौती देने के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाया।”
सुश्री गुप्ता ने सवाल किया कि क्या जिन लोगों ने उनके (बिलकिस बानो) साथ दुष्कर्म किया। उनके पूरे परिवार को हत्या कर दी, वे उस उदारता के पात्र हैं जो उन्हें दी गई है।
उन्होंने कहा, ‘ इसका जवाब न है।’
उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया कि गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, जेल और सुधार प्रशासन दोषियों की सजा में छूट देने के मामले में नकारात्मक राय दी थी। इनके द्वारा दोषी राधेश्याम की समय से पहले रिहाई की सिफारिश नहीं की थी।
सुश्री गुप्ता ने सवाल किया, “इस मामले में दोषियों के प्रति नरमी कैसे बरती गई।”
गुजरात सरकार ने बिलकिस के सभी 11 दोषियों को सजा में छूट दी और पिछले साल 15 अगस्त को उन्हें रिहा कर दिया, जिससे भारी सार्वजनिक आक्रोश पैदा हुआ और इसे ‘न्याय के साथ क्रूरता’ करार दिया गया।
बिलकिस ने 11 दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की थी, जिस पर दूसरे दिन सुनवाई पूरी हुई।