ईश्वर की असीम् अनुकम्पा से प्राप्त होता है यह मानव-शरीर। फिर भी यदि हम अपने शरीर के प्रति सजग और सतर्क न रहें तो यह हमारी मूर्खता ही नहीं, महामूर्खता है। प्राय: हम अपने शौक के वशीभूत होकर विभिन्न प्रकार के व्यसनों में पड़ जाते हैं। स्वाद के चक्कर में ऐसे-ऐसे खाद्य पदार्थ खा जाते हैं जो हमारे शरीर पर गहरा प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और अधिक धन कमाने के लालच में सामर्थ्य से अधिक काम करने लगते हैं।
कभी-कभी तो अधिक धन के लालच में हम अनैतिक कार्य भी करने लगते हैं। परिणामस्वरूप शरीर की उचित देखभाल न कर पाने के कारण हमारे शरीर में अनेकानेक व्याधियां प्रवेश कर जाती हैं और फिर जो शरीर हमारी खूबसूरती और खुशियों का आधार था, हमें बदसूरत और दुखी बना देता है।
गांधी जी के अनुसार जैसे जीवन एक कला है, वैसे ही स्वस्थ रहना भी एक कला है जो प्रत्येक मनुष्य को आनी चाहिए। बिना स्वस्थ शरीर के जीवन नरक बन जाता है। जब हमारा शरीर अनेक प्रकार की व्याधियों से ग्रसित रहता है तो हमें अपने ही शरीर से घृणा होने लगती है और फिर हम जीवन से मुक्ति की चाह करने लगते हैं। अत: शरीर को स्वस्थ रखना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
स्वस्थ रहने के लिए बहुत आवश्यक है कि हमारी एक संतुलित दैनिक जीवनचर्या हो। ऐसा न हो कि कभी तो हम आधी रात तक जागते रहें या फिर देर सुबह तक सोते रहें और कभी बहुत जल्दी सो जायें या फिर बहुत जल्दी उठ जायें। सही समय पर सोना और सही समय पर उठना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।
यों तो हम सुबह आधा-एक घंटा व्यायाम करने की आदत बना लें तो कहने ही क्या हैं लेकिन अगर व्यायाम न कर पायें तो सुबह टहलना तो बहुत ही आवश्यक हो जाता है। दरअसल सुबह-सुबह टहलने से जहां एक ओर हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, वहीं दूसरी ओर हमारी सुंदरता में भी इज़ाफ़ा होता है।
स्वस्थ रहने के लिए दूसरी आवश्यक चीज है-सही समय पर संतुलित भोजन करना। यों तो हर मनुष्य भोजन करता है लेकिन उल्टा-सीधा और असमय भोजन कर लेना स्वास्थ्य के लिए कोई अच्छी बात नहीं है।
कभी-कभी जब हमें भोजन स्वादिष्ट लगता जाता है, तब हम अनाप-शनाप पेट भर जाते हैं। ऐसा करना भी स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है। भोजन हमेशा संतुलित, सही समय पर और भूख से थोड़ा कम खाना चाहिए।
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ रहना भी बहुत आवश्यक है। वस्तुत: हमारी मानसिकता हमारी सोच की द्योतक होती है। हमारी सोच हमारे क्रियाकलापों की द्योतक होती है और हमारे क्रियाकलाप हमारे स्वास्थ्य के द्योतक होते हैं। कभी-कभी हमारे दिलो-दिमाग में गंदे-गंदे विचार उपजने लगते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। हमें मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अश्लील, अनैतिक, असत्य और गंदे विचारों से दूर रहना चाहिए तथा सद्साहित्य का अध्ययन करना चाहिए।
इस प्रकार जीवन को सुंदरतम ढंग से जीने के लिए, अधिकतम समय तक जीवित रहने के लिए और आकर्षक दिखने के लिए हमारा सभी प्रकार से स्वस्थ रहना लाजि़मी है तथा स्वस्थ रहने के लिए हमारा सजग, सतर्क और संयमित रहना भी अति आवश्यक है।
– अनार सिंह वर्मा