गाजियाबाद। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट काक का निधन हो गया है। काक उनका एक पहचानने योग्य सिग्नेचर नाम था। उनका असली नाम हरीश चंद्र शुक्ला था। काक के कार्टून और चित्रों ने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को बहुत सटीकता से चित्रित किया। उनका निधन एक बड़ी क्षति है और उनके प्रशंसकों के लिए यह बहुत दुखद समाचार है। काक का अंतिम संस्कार गाजियाबाद में किया जाएगा, जहां उनके परिवार और करीबी लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
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हरीश चंद्र शुक्ला का जन्म 16 मार्च 1940 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के एक छोटे से गांव पुरा में हुआ था। वे एक पेशेवर भूतपूर्व मैकेनिकल इंजीनियर थे, जबकि उनके पिता, शोभा नाथ शुक्ला, एक स्वतंत्रता सेनानी थे। काक के कार्टूनों से 1983 से 1990 के बीच का एक ऐसा दौर जुड़ा हुआ है, जब अखबारों में पढ़ने वाले अधिकांश लोग पहले काक के कार्टून को देखते थे और फिर हेडलाइंस पढ़ते थे। उनकी सेंस ऑफ ह्यूमर और तीखे कटाक्ष में अद्भुत ताजगी थी। उनके कार्टूनों में रोज़ की राजनीतिक हलचलों का विश्लेषण बेहद सटीक तरीके से दिखता था। हालांकि आज की पीढ़ी शायद काक से ज्यादा परिचित न हो, लेकिन उनके कार्टूनों ने उस समय में बड़ी पहचान बनाई थी।
काक को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 2003 में उन्हें हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा “काका हाथरसी सम्मान” से नवाजा गया। इसके बाद, 2003 में ही एर्नाकुलम (कोच्चि) में आयोजित कार्टून शिविर के दौरान उन्हें केरल ललित कला अकादमी और केरल कार्टून अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। 2009 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्टूनिस्ट्स, बैंगलोर ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। उसी साल 2009 में, काक को कार्टून वॉच द्वारा आयोजित एक कार्टून फेस्टिवल में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी दिया गया। इसके बाद, 2016 में उन्हें पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और 2017 में भारतीय प्रेस परिषद द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।