सभी रिश्तों की बुनियाद का आधार केवल विश्वास होता है। यदि इसे हम निकाल दें तो सब शून्य हो जाएगा। घर-परिवार में परस्पर विश्वास हो, तो वहाँ स्वर्ग के समान सुमधुर और सामंजस्यपूर्ण वातावरण का निर्माण होता है। वहाँ रहने वालों को तो आनन्द आता ही है और आने वाले अतिथि भी प्रसन्न होकर जाते हैं।
ऐसा माहौल तभी बन सकता है जब बड़े-बुजुर्ग सबके साथ समता का व्यवहार करें व सब पर ही अपना वरद हस्त रखें। बच्चे आज्ञाकारी हों और बड़ों का सम्मान करने वाले हों। छोटे-बड़े सभी सदस्य एक-दूसरे की जड़ें काटने के बजाय उन्हें अपने प्यार और सद्भाव से सींचें।
इसका कारण है रिश्ते बहुत ही नाजुक और कोमल पौधों की तरह होते हैं। ऐसे घर-परिवारों की सुगन्ध दूर-दूर तक फैलती है। लोग हमेशा उनकी एकजुटता व सामंजस्य के उदाहरण देते हैं।
इसके विपरीत जिस घर-परिवार में सदा परस्पर अविश्वास होता है, वहाँ अशांति रहती है। हमेशा लड़ाई-झगड़ा होते रहते हैं। कोई किसी को फूटी आँख नहीं सुहाता। छोटे-बड़े का लिहाज वहाँ नहीं किया जाता। वहाँ हर चीज की बर्बादी होती है। कहते हैं ऐसे घरों से माँ लक्ष्मी रुष्ट होकर शीघ्र ही अपना ठिकाना बदल लेती है।
इसी प्रकार पति-पत्नी का रिश्ता जो विश्वास की नाजुक डोर में बंधा होता है यदि उसमें इसकी कमी आ जाए तो उनमें तलाक जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। उनके संबध की टूटन दो परिवारों के कष्ट का कारण बनती है।
मित्रों में मित्रता का आधार परस्पर विश्वास होता है। इस विश्वास की कसौटी पर जो खरा नहीं उतरता कोई उसका साथ नहीं देता। ऐसे मनुष्य से सभी किनारा कर लेते हैं। वह व्यक्ति किसी का प्रिय नहीं बन पाता। इसलिए वह अलग-थलग कर दिया जाता है।
व्यापार में लाखों करोड़ों रुपयों का व्यवहार विश्वास की बुनियाद पर हो जाता हैं। उचंती में भी कारोबार में लाखों रुपयों का लेनदेन होता है।
और तो और, अंडरवर्ल्ड, स्मगलिंग आदि सभी असामाजिक कार्य करने वाले भी विश्वास के भरोसे ही चलते हैं। परस्पर विश्वासघात करने वालों को उसी क्षण वे मौत के घाट उतार देते हैं।
सभा-सोसायटी, कार्यक्षेत्र आदि हर स्थान पर विश्वास का दामन थामकर चला जाता है। अविश्वास का वहाँ कोई अर्थ ही नहीं होता।
परिवार की तरह देश भी विश्वास के भरोसे चलता है। प्रजा शासक पर और शासक पर विश्वास करके ही आगे बढ़ते हैं। देश के विश्वासघात या गद्दारी करने वालों के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। वे लोग उनसे बच नहीं सकते।
एक पैदा हुआ बच्चा भी ऊपर से नीचे आते समय मुट्ठी में कपड़ा या उंगुली जो हाथ में आ जाए, कसकर पकड़ लेता है क्योंकि उसे विश्वास होता है कि जिसकी गोद में वह है, उसे गिरने नहीं देगा। इसी प्रकार कुछ माह के बच्चे को आकाश में उछालने का खेल खेलते हैं तो वह हमारे साथ ही इस खेल का आनन्द लेता है। उसे डर नहीं लगता बल्कि विश्वास होता है कि मैं सुरक्षित हाथों में हूँ।
सभी संबधों एवं व्यवहारों में आपसी विश्वास का होना बहुत आवश्यक होता है। अविश्वास संबंधों की चूलें हिला देता है। इसीलिए विश्वासघात होने पर आत्महत्या या खून-खराबा हो जाता है। यथासंभव हमें यही यत्न करना चाहिए कि हर क्षेत्र में परस्पर विश्वास बना रहे जिससे सभी लोगों में समरसता बनी रहे। इसकी स्वस्थ समाज को बहुत आवश्यकता है।
-चन्द्र प्रभा सूद