हिंदू धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व है। पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण विधि और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। इन दिनों में गया तीर्थ का महत्व भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि बिहार के गया तीर्थ में पितरों की शांति के लिए तर्पण विधि और पिंडदान किया जाए तो सात पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। गया जिला प्रशासन इस मेले के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियों में जुट जाता है। इस समय देश के अलग-अलग राज्यों से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लाखों की संख्या में तीर्थयात्री गया आते हैं।
गया तीर्थ का हिंदू धर्म में काफी महत्व है और यह बौद्ध धर्म की आस्था का भी प्रमुख स्थल है। यहां देशभर से लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि यहां पिंडदान और श्राद्ध करने से आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। यहां केवल देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने यहां राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।
वायु पुराण में गया तीर्थ के बारे में बताया गया है कि
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुरुः अंगनागमः, पापं तत्संगजं सर्वं गयाश्राद्धाद्विनश्यति।
अर्थात गया में श्राद्ध कर्म करने से ब्रह्महत्या, स्वर्ण की चोरी आदि जैसे महापाप नष्ट हो जाते हैं। पितृ पक्ष में गया में पितरों का श्राद्ध-तर्पण करने से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है क्योंकि भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में गया में निवास करते हैं इसलिए इस स्थान को पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। देशभर में श्राद्ध कर्म करने के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन गया तीर्थ का स्थान सर्वोपरि माना गया है।
पुराणों में बताया गया है कि प्राचीन शहर गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं।वायु पुराण,गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में भी गया शहर का महत्व बताया गया है। इस तीर्थ पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए गया को मोक्ष की भूमि अर्थात मोक्ष स्थली कहा जाता है। गया शहर में हर साल पितृपक्ष के दौरान मेला लगता है, जिसे पितृपक्ष का मेला भी कहा जाता है। गया शहर हिंदुओं के साथ साथ बौद्ध धर्म के लिए भी पवित्र स्थल है। बोधगया को भगवान बुद्ध की भूमि भी कहा जाता है। यहां पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने अपनी शैली में यहां कई मंदिरों का निर्माण करवाया है।
गया तीर्थ में पितरों की आत्मा की शांति के लिए फल्गु नदी के तट पर ही पिंडदान किया जाता है। फल्गु नदी के तट पर विष्णु पद नाम का एक मंदिर है और मंदिर के पास ही अक्षयवट है, यहीं पूर्वजों के नाम का पिंडदान किया जाता है। फल्गु नदी आगे चलकर यह गंगा नदी में मिल जाती है। इस नदी का वर्णन वायु पुराण में भी देखने को मिलता है। बताया जाता है कि इस नदी को माता सीता का शाप भी लगा है, इस वजह से यहां पानी धरती के अंदर से बहता है। इसलिए फल्गु नदी को सलिला भी कहा जाता है। सबसे पहले इस नदी के तट पर ब्रह्माजी ने गया को श्रेष्ठ तीर्थ मानकर यहां यज्ञ किया था। तभी से गया में श्राद्ध और पिंडदान के कार्य आरंभ हुए। गया में श्राद्ध करने के बाद कुछ शेष नहीं रह जाता है। इसके बाद भगवान राम और पांडवों ने भी इस नदी में श्राद्ध कर्म किए हैं।
गया में भगवान विष्णु के पदचिह्नों पर मंदिर बना है। जिसे विष्णुपद मंदिर कहा जाता है। पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है। इसे धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि पितरों के तर्पण के पश्चात इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन करने से समस्त दुखों का नाश होता है एवं पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं। इन पदचिह्नों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है। इस पर गदा, चक्र, शंख आदि अंकित किए जाते हैं। यह परंपरा भी काफी पुरानी बताई जाती है जो कि मंदिर में अनेक वर्षों से की जा रही है। फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के अलावा पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।
विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है। राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न स्थापित हो गए। माना जाता है कि विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं।
विष्णुपद मंदिर सोने को कसने वाले पत्थर कसौटी से बना है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड के पत्थरकट्टी से लाया गया था। इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है। सभा मंडप में 44 पिलर हैं। 54 वेदियों में से 19 वेदी विष्णपुद में ही हैं, जहां पर पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान होता है। यहां साल भर पिंडदान होता है। यहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के स्पर्श से ही मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं।
विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित है सीताकुंड। यहां स्वयं माता सीता ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। पौराणिक काल में यह स्थल अरण्य वन जंगल के नाम से प्रसिद्ध था। भगवान श्रीराम, माता सीता के साथ महाराज दशरथ का पिंडदान करने आए थे, जहां माता सीता ने महाराज दशरथ को फल्गु जल में बालू का पिंड अर्पित किया था, जिसके बाद से यहां बालू से बने पिंड देने का महत्व है।
विष्णुपद मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का कलश और 50 किलो सोने की ध्वजा लगी है। गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और 50 किलो चांदी का अष्टपहल है, जिसके अंदर भगवान विष्णु की चरण पादुका विराजमान है। इसके अलावा गर्भगृह का पूर्वी द्वार चांदी से बना है। वहीं भगवान विष्णु के चरण की लंबाई करीब 40 सेंटीमीटर है। 18 वीं शताब्दी में महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था, लेकिन मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु के चरण सतयुग काल से ही है।
गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। गयासुर के अत्याचार से दु:खी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह गयासुर से देवताओं की रक्षा करें। इस पर विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया।
वरीय पुलिस अधीक्षक आशीष भारती के अनुसार इस बार श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए विष्णुपद मंदिर एरिया, रेलवे स्टेशन, प्रेतशिला और बोधगया एरिया में जगह-जगह पुलिसकर्मी तैनात रहेंगे। इसके अलावा, महत्वपूर्ण जगहों पर 100 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे भी लगाए जा रहे हैं। इन कैमरों की निगरानी के लिए एक कंट्रोल रूम बनाया जाएगा, जहां से पुलिस हर गतिविधि पर नजर रखेगी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए रामशिला मोड़, उत्तर मानस टीओपी, पिता महेश्वर जाने वाले मार्ग पर, अंदर गया टीओपी, चांदचौरा से विष्णुपद जाने वाले मार्ग पर, गया कुपवेदी, बंगाली आश्रम, अक्षयवट तीन मुहानी, बाटा मोड़, गया कॉलेज खेल परिसर, मुन्नी मस्जिद मोड़, बाईपास, छोटकी नवादा, घुघरीटांड़ हनुमान मंदिर बाईपास पटना-गया रोड, चांदचौरा पूर्वी छोर, नारायण चुआं मोड़ सहित 27 जगहों पर बैरिकेडिंग की जाएगी।