सौंदर्य एवं स्वास्थ्य का आपस में बहुत ही गहरा रिश्ता है। प्रकृति ने हमें स्वास्थ्य एवं सुन्दरता को निखारने के लिए अनेक उपहार प्रदान किये हैं जैसे कन्द, मूल, फल, फूल एवं पत्तियां। ऐसे ही प्राकृतिक उपहार हैं जिनके माध्यम से न सिर्फ हम सेहत को सुधार सकते हैं बल्कि इनके प्रयोग से सुन्दरता को भी निखारा जा सकता है। इन्हीं मृत्युंजयी प्राकृतिक वरदानों के कड़ी में प्रकृति का एक उपहार है लौकी ।
लौकी की सब्जी तो रूचिकारक बनती ही है, साथ ही इसमें बहुमूल्य औषधि गुण भी हैं जिसके कारण अनेक बीमारियों का यह शमन करती है। आयुर्वेदाचार्यों ने इसे ‘सर्वरोगौषधि’ कहकर पुकारा है।
लौकी में ‘बीटा कैरोटिन’ नामक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह तत्व शरीर में पहुंचकर रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास सराहनीय ढंग से करता है।
लौकी शक्तिदायी गुणों से भरपूर है तथा वीर्यवद्र्धक भी है। यह हृदय रोग, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, मूत्रारोग, पीलिया (जोण्डिस), बवासीर, दाँत-कान दर्द, आंख की तकलीफें, उन्माद, हिस्टीरिया, पागलपन, क्षयरोग, डिहाइड्रेशन, अनिद्रा, मासिकस्राव की अनेक तकलीफों, स्तनविकार, सेक्सगत बीमारियों सहित अनेक बीमारियों को दूर करने वाली अचूक औषधि मानी जाती है। लौकी के नियमपूर्वक एवं पर्याप्त मात्रा में सेवन करते रहने से ‘इम्यून सिस्टम’ इतना ताकतवर हो जाता है कि क्षय जैसी बीमारियाँ भी पास फटकने की हिम्मत नहीं करतीं।
गर्भवती नारियाँ अगर कच्ची लौकी के सौ ग्राम गूदे में पचास ग्राम मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करें तो उनका बच्चा स्वस्थ, गोरा एवं खूबसूरत पैदा होगा।
लौकी के छिलकों को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर ताजे पानी के साथ पाँच ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेते रहने से खूनी बवासीर में चमत्कारिक लाभ पहुँचता है। एक लिटर पानी में लौकी के गूदे को डालकर उसमें दस ग्राम लहसुन पीसकर डाल दें। पानी को तब तक उबालें जब तक वह आधा न हो जाए।
इस पानी को ठंडा करके इससे कुल्ला करने से दाँत दर्द आराम होता है। नित्य कच्चे लौकी को छीलकर गाजर-मूली के समान प्रात:काल खाते रहने से यौवन में निखार आता है।
-पूनम दिनकर