नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को राज्य के राज्यपाल द्वारा लंबित रखने के मामले में अटार्नी जनरल से कहा कि आप राज्यपाल से कहिए कि मुख्यमंत्री से मिलकर इस समस्या का समाधान निकालें। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को करने का आदेश दिया।
आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने के फैसले पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि जब राज्यपाल ने विधेयकों को लंबित रखने की बात कही तब वे राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं। राज्यपाल द्वारा लंबित रखने के बाद विधानसभा ने दोबारा विधेयक पारित कर भेजा। ऐसे में आप अनुच्छेद 200 के तहत राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं।
20 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया तब राज्यपाल ने 13 नवंबर को विधेयक वापस भेज दिया। ये विधेयक 2020 से लंबित थे। राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट आने का इंतजार क्यों करते हैं। तब अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि विवाद केवल उन विधेयकों को लेकर है, जिसमें राज्य विश्वविद्यालयों में नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को वापस लेना है।
10 नवंबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा राज्य विधानसभा से पारित 12 विधेयकों को लंबे समय से लंबित रखने पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी और पी विल्सन ने कहा था कि राज्यपाल एन रवि ने विधानसभा से पारित 12 विधेयकों को लटका रखा है। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से दिए गए कुछ फैसलों जैसे कैदियों की समय पूर्व रिहाई, तमिलनाडु लोक सेवा आयोग में नियुक्ति इत्यादि से संबंधित फाइलों को राज्यपाल दबाकर बैठ गए हैं।
तमिलनाडु सरकार की याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल आरएन रवि ने विधानसभा से पारित 12 विधेयकों पर अपनी सहमति की मुहर नहीं लगाई है। तमिलनाडु सरकार ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल लोकसेवकों पर अभियोजन की अनुमति देने संबंधी फाइल और कैदियों की समय से पहले रिहाई से जुड़ी फाइलों को दबाकर बैठ गए हैं। तमिलनाडु सरकार ने मांग की है कि राज्यपाल को इन फाइलों को समयबद्ध तरीके से निस्तारित करने का दिशानिर्देश पारित किया जाए।