नयी दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने वाराणसी की ज्ञान वापी जामा मस्जिद के तहखाने में पूजा की इजाजत देने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने बाबरी मस्जिद- राम जन्म भूमि मामले में ऐसा रास्ता दिखाया है जिससे न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा कमजोर हुआ है।
मौलाना मदनी ने शुक्रवार को यहां ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुये कहा कि देश की आजादी के बाद से ही मुसलमान ऐसी समस्याओं से घिरे हुये हैं। बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि मामले में उच्चतम न्यायालय को कानून के मुताबिक फैसला लेना था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने यह मानते हुये कि ये बाबरी मस्जिद है, आस्था के आधार पर फैसला दिया, जिसके कारण ऐसे फैसले आ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि मामले में दलीलों के आधार पर फैसले को स्वीकार करने की बात कही थी, लेकिन जो फैसला आया उससे सिर्फ हम ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े वकील और बुद्धिजीवी भी इस फैसले से असहमत थे। उन्होंने कहा कि स्थिति ऐसी हो गयी है कि जिस भी अदालत में भक्ति का मामला आएगा, वहां ‘आस्था’ के आधार पर फैसला होगा।
मौलाना मदनी ने कहा कि अगर देश में यही रवैया रहेगा तो किसी को भी न्याय नहीं मिलेगा, चाहे वह जैन हो, ईसाई हो, पारसी हो या सिख हो। उन्होंने कहा कि यह देश के लिए बहुत बड़ी त्रासदी होगी। उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पीड़ित लोगों के न्याय के लिये अदालतें ही आखिरी सहारा होती हैं और अगर वे ही किसी का पक्ष लेने लगें तो न्याय किसे मिलेगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि ज्ञानवापी जामा मस्जिद के तहखाने में पूजा करने के फैसले ने हर निष्पक्ष सोच वाले नागरिक को चौंका दिया है। इस फैसले से मुसलमान गम में हैं, उन्होंने कहा कि कोई मुसलमान हड़पी हुई जमीन पर मस्जिद नहीं बनाता और बिना अनुमति के किसी भी जगह मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं है।
उन्होंने सरकार से मांग की कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 को लागू किया जायें और न्यायालय को भी इस कानून का सम्मान करना चाहिये। उन्होंने कहा कि अगर न्याय के प्रति लोगों का अविश्वास बढ़ेगा तो यह देश के लिये अच्छा नहीं होगा।
जमीयत उलेमा हिंद ( महमूद ) के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद मदनी ने कहा कि न्यायालय के फैसले ने भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। उन्होंने कहा कि यह एकतरफा फैसला है। उच्चतम न्यायालय तकनीकी आधार पर हस्तक्षेप करने को तैयार नहीं है, वह कहां जायेंगे, किससे कहेंगे? उन्होंने कहा कि मामले को इतना नहीं बढ़ने देना चाहिए कि देश के हालात खराब हो जायें।
जमीयत अहले हदीस के अमीर मौलाना असगर इमाम मेहदी सलफी ने कहा कि न्यायालय का फैसला बिना किसी प्रक्रिया का पालन किये आया है, बल्कि 1991 के पूजा स्थल कानून को किनारे रख दिया गया है। उन्होंने मीडिया से कानून-व्यवस्था का ख्याल रखते हुये इस मुद्दे को उजागर करने की अपील की।
जमात-ए-इस्लामी के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम ने अदालत के फैसले को न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ बताया और कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वे की रिपोर्ट केवल दावों पर आधारित है और इसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से न्यायालय की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंची है।
जमीयत उलेमा हिंद के सचिव नियाज़ अहमद फारूकी ने कहा कि न्याय का सिद्धांत दोनों पक्षों को समान अवसर देना है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है और अदालत का सिद्धांत है कि न केवल न्याय किया जाना चाहिये, बल्कि न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिये।