राजस्थान में होली के मौके पर एक दूल्हा देवता की पूजा की परंपरा है। दूल्हे के वेश वाले इस देवता की प्रतिभाएं कई गांवों व नगरों के चौराहों पर देखी जा सकती हैं। इसकी पूजा ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस देवता की पूजा करने से कुंवारों की शादी हो जाती है। नि:सन्तान महिलाओं को सन्तान की प्राप्ति होती है।
कौन है यह देवता? लोक परम्परा के अनुसार यह देवता राजकुमार इलोजी है जिसकी शादी हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से होने वाली थी किंतु शादी वाले दिन ही होलिका प्रहलाद को जलाने के प्रयास में खुद ही जल मरी। अपनी भावी पत्नी की मृत्यु के शोक में दूल्हा बने राजकुमार इलोजी ने अपने तन पर धूल-राख मल ली और आजीवन कुंवारें ही रहें।
कालान्तर में इलोजी को देवता के रूप में पूजा जाने लगा। कहते हैं कि हिरण्यकश्यप राजा की बहन होलिका का विवाह राजकुमार इलोजी से होना तय हुआ था। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद की ईश्वर भक्ति से अप्रसन्न था। वह चाहता था कि ईश्वर की नहीं, उसकी ही पूजा की जाये। प्रहलाद अपनी ईश भक्ति से नहीं डिगा तो राजा ने उसे मरवाने की बहुत कोशिशें की, किंतु प्रभु कृपा से प्रहृलाद हर बार सुरक्षित रहा।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका विभिन्न मंत्रों की ज्ञाता विद्वान महिला थी। वह उच्चकोटि की साधिका और मंत्रों की सिद्धि प्राप्त महिला थी। उसका विवाह राजकुमार इलोजी से तय हो चुका था।
राजा हिरण्यकश्यप ने सोचा कि प्रहलाद को मरवाने के लिए होलिका की सहायता ली जाये। बस उसने अपनी बहन से मन की बात कह दी। भाई की योजनानुसार बुआ होलिका, प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयी। उसने अपना वह सिद्ध दिव्य वस्त्र भी ओढ़ लिया जिस पर अग्नि का प्रभाव नहीं होता था।
‘जाको राखे सांइया, मार सके न कोय। कहते है कि वह दिव्य वस्त्र होलिका के तन से हटकर प्रहलाद के तन पर आ गया। बस होलिका उस आग में जल मरी। प्रहलाद बच गया।
यह ठीक वहीं दिन था, जिस दिन राजकुमार इलोजी की बारात होलिका से विवाह करने चली थी। बारात धूमधाम से चल रही थी कि अचानक होलिका की मृत्यु की खबर मिली। अपनी होने वाली पत्नी के वियोग में इलोजी पगलाया सा हो गया।
वियोगी इलोजी वहां पहुंचा जहां होलिका जली थी। उसने अपने कपड़े फाड़ डाले। शरीर पर राख मल कर विलाप करने लगा। अपनी भावी पत्नी की मृत्यु का उसे इतना दुख हुआ कि वह फिर आजीवन कुंवारा रहा।
राजस्थानी लोक संस्कृति में उसे देवता का स्थान मिला। इलोजी के दूल्हा वाले रूप में पूजा की जाने लगी। कहते है इलोजी द्वारा शरीर पर धूल-राख मलने की स्मृति में ही होली के बाद धुलेंडी मनाने की परम्परा चली।
राजकुमार देवता इलोजी आजीवन कुंवारा रहा किंतु मान्यता है कि वह सन्तान होने और विवाह होने का वर देता है।
– अनिल शर्मा ‘अनिल’